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काहे नाथ मोहि बिसराई

kaahe naath mohi bisraii

रत्नावली

अन्य

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रत्नावली

काहे नाथ मोहि बिसराई

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और अधिकरत्नावली

    काहे नाथ मोहि बिसराई।

    इक पति ही परलोक लोक गति, वेद पुराननि मानी॥

    पतिहि सखा गुरु बंधु देव धन, सरबस वेद बखाने।

    हों अजान ह्वै कहा जनाऊँ, जानत आपु भुलानें॥

    नीर छीन सर दीन मीन जिमि, देह जथा बिनु देही।

    बिनु पिय तिय तिमी जती ग्यान बिनु, गेह जथा बिनु गेही॥

    जानि करयौ अपराध कबहूँ, नाथ आप हू जानें।

    भयौ भूल सों होय ना जानों, बारिक आइ बखाने॥

    मांगों छमा चरन परि हों, पदरज निज सिर लाऊँ।

    हा-हा पाऊँ पधारें निजग्रह, रूठे नाथ मनाऊँ॥

    जननी जनक तजी जीवन धन, अब इक आस तिहारी।

    सोऊ त्यागी कित गए आपु पिय, मेरे हृदय बिहारी॥

    कोमल हृदय आपु करुनामय, किमि निज बानि बिसारी।

    करि-करि सुरत बिसूरति निसि दिन, दासी रतन तिहारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रत्नावली (पृष्ठ 53)
    • संपादक : वेदव्रत शास्त्री
    • रचनाकार : रत्नावली
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
    • संस्करण : 1990

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