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गुरु बिन कौन हरै मोरी पीरा

guru bin kaun harai mori pira

धनी धरमदास

अन्य

अन्य

धनी धरमदास

गुरु बिन कौन हरै मोरी पीरा

धनी धरमदास

और अधिकधनी धरमदास

    गुरु बिन कौन हरै मोरी पीरा॥

    रहत अली मलीन जुग, राई, बिनत पाए एक हीरा।

    पाये हीरा रहे नहिं धीरा, लैइ के चले वोहि पारख तीरा॥

    सो हीरा साधू सब परखे, तब से भयो मन धीरा।

    धरमदास विनबै कर जोरी, अजर अमर गुरु पाये कबीरा॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 255)
    • संपादक : जगजीवन राम
    • रचनाकार : धरमदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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