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नैन तेरे री अति चपल

nain tere ri ati chapal

गोस्वामी हरिराय

अन्य

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गोस्वामी हरिराय

नैन तेरे री अति चपल

गोस्वामी हरिराय

और अधिकगोस्वामी हरिराय

    नैन तेरे री अति चपल अरुन सुंदर,

    मो मन बस करन कारन बिधना रचे।

    खंजन मीन मृग कुरंग तुरंग चल दल,

    सबहिन के गुन इकठे आन सचे॥

    याही तें लगत तान बान से पिय हिय आन,

    मारति है सुजान घाइ नैक नाँ बचे।

    ‘रसिक प्रीतम’ अधीन भये, तन की सुधि बिसरि गये,

    टरत नहीं पसु पंछी, एक टक देखन ललचे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गो. हरिराय जी का पद-साहित्य (पृष्ठ 79)
    • संपादक : प्रभुदयाल मीतल
    • रचनाकार : गोस्वामी हरिराय
    • प्रकाशन : साहित्य संस्थान मथुरा
    • संस्करण : 1962

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