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मुरकि-मुरकि चितवनि चित चोरै

muraki muraki chitawni chit chorai

ललितकिशोरी

अन्य

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ललितकिशोरी

मुरकि-मुरकि चितवनि चित चोरै

ललितकिशोरी

और अधिकललितकिशोरी

    मुरकि-मुरकि चितवनि चित चोरै।

    ठुमकि चलनि, हेरा दै बोलनि, पुलकनि नंदकिसोरै॥

    सहरावनि गैयानु चौंकनी, थपकनि कर बनमाली।

    गुहरावनि लै नाम सजनि कौ धौरी घूमरि आली॥

    चुचकारनि चट झपटि बिचुकनी, हूँ हूँ रहौ रँगीली।

    नियरावनि चोंखनि मगही में, झुकि बछियान छबीली॥

    फिरकैया लै निर्त्त अलापन बिच-बिच तान रसीली।

    चितवनि ठिठुकि उढ़कि गैया सों, सींटी भरनि, रसीली॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 273)
    • रचनाकार : ललितकिशोरी
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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