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अनगढ़िया देवा

anagaDhiya dewa

कबीर

कबीर

अनगढ़िया देवा

कबीर

अनगढ़िया देवा, कौन करै तेरी सेवा।

गढ़े देव को सब कोइ पूजै, नित ही लावै सेवा।

पूरन ब्रह्म अखंडित स्वामी, ताको जानै भेवा।

दस औतार निरंजन कहिए, सो अपना ना होई।

यह तो अपनी करनी भोगैं, कर्ता और हि कोई।

जोगी जती तपी संन्यासी, आप आप में लड़ियाँ।

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, राग लखै सो तरियाँ॥

अनगढ़ देवता, तुझे मूर्ति का रूप नहीं दिया जा सकता, तेरी सेवा कौन करेगा। हर एक अपने हाथों से बनाए हुए देवता को पूजता है और उसकी सेवा करता है, लेकिन वह जो पूर्ण है, जो ब्रह्म है, जो अखंडित है उसका नाम कोई नहीं लेता। ये लोग दस अवतारों को मानते हैं जो मन से गढ़े गए हैं, लेकिन कोई अवतार निरंजन नहीं है। ये तो अपनी-अपनी करनी भोग रहे हैं, करने वाला तो और ही कोई है। जोगी, तपस्वी और संन्यासी सब आपस में लड़ रहे हैं। कबीर कहते हैं, सुनो भाई साधु, जिसने प्रेम (राग) को देखा है वह तर गया है।

स्रोत :
  • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 37)
  • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
  • संस्करण : 2010

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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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