चरख़े की चमत्कारी

charख़.e kii chamatkaarii

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

चरख़े की चमत्कारी

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

 

एक

चला चल चरख़ा तू दिन रात।
चलता चरख़ बनाता निस दिन ज्यों ग्रीष्म बरसात॥

मन मन मंत्र जपा कर मन में सुन न किसी की बात।
कात कात कर सूत मैनचिस्टर को कर दे मात॥

टेकुआ का सर साध धनुष रघुबर की लेकर तांत।
लंका से लंकाशायर का कर बिलंब बिन घात॥

शक्ति सुदर्शन चक्र की दिया हरि ने तुझे दिखात।
तेरे चलने की चरचा सुनि यूरप जी अकुलात॥

ज्यों ज्यों तू चलता त्यों त्यों आता स्वराज्य नियरात।
परतंत्रता दीनता भागी जाती खाती लात॥

चलना तेरा बंद हुआ जबसे भारत में तात।
दुखी प्रजा तबसे न यहाँ की अन्न पेट भर खात॥

जो कमात दै देत बिदेसिन बसन काज ललचात।
दै दै अन्न नैनसुख लेत सिटिन साटन बानात॥

चल तू जिससे खायँ दुखी भर पेट दाल औ भात।
सस्ता सुद्ध स्वदेशी खद्दर पहिन छिपावें गात॥

हिंदू मुसलिम जैन पारसी ईसाई सब जात।
सुखी होंय हिय भरे प्रेमघन सकल भारती भ्रात॥

दो

ज्यों ज्यों चपल चरख़ा चलत।
बसन व्यापरी बिदेसी लखि बिलखि कर मलत।
कहत गुन गुन देत गुन गुन दीन गन ज्यों पलत॥
बहुरि भारत में सकल संपति साहस हलत।
ज्यों ज्यों चपल०॥

फेरि कर गह अमित कर गह दर्प मिल दल दलत।
कल्पतरु बनि पट पवित्र प्रचारि शुभ फल फलत॥
ज्यों ज्यों चपल०॥

बहिष्कृत होलिका बीच बसन बिदेसी जलत।
एकता साँचा सवाँरि स्वराज्य सिक्का ढलत॥
ज्यों ज्यों चपल०॥

देशद्रोहिन के कुतरकनि करत साबित ग़लत।
राज अधिकारी लखत जे खल तिन्हें अति खलत॥
ज्यों ज्यों चपल०॥

बैर फूट बढ़ाय भारतबासिनैं जे छलत।
प्रेमघन तिन मिलन लखि उनको हियो खलभलत॥
ज्यों ज्यों चपल चरखा चलत॥

स्रोत :
  • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 45)
  • संपादक : नंद किशोर नवल
  • रचनाकार : बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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