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जुगल छवि कब नैनन में आवै

jugal chhawi kab nainan mein aawai

जुगलप्रिया

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जुगलप्रिया

जुगल छवि कब नैनन में आवै

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और अधिकजुगलप्रिया

    जुगल छवि कब नैनन में आवै।

    मोर मुकुट की लटक चंद्रिका सटकारो लट भावै॥

    गर गुंजा गजरा फूलन के फूल से बैन सुनावै।

    नील दुकून पीत पट भूषण मन भावन दरसावै॥

    कटि किंकिनि कंकन कर कमलनि वचनित मधुर छवि छावै।

    ‘जुगल प्रिया’ पद-पदुम परसि कै अनल नहीं सचुपावै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ (पृष्ठ 81)
    • रचनाकार : जुगलप्रिया
    • प्रकाशन : प्रमोद पुस्तक माला काटरा, प्रयाग
    • संस्करण : 1941

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