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बृज पर नीकी आज घटा

brij par niki aaj ghata

कुंभनदास

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कुंभनदास

बृज पर नीकी आज घटा

कुंभनदास

और अधिककुंभनदास

    बृज पर नीकी आज घटा।

    नेन्हीं नन्हीं बूंद सुहावनी लागत चमकत बीज छटा॥

    गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा।

    तेसोई सुर गावत चातक पिक प्रगट्यो है मदन भटा॥

    सब मिलि भेट देत नंद लाल ही बैठे ऊंचे अटा।

    कुंभनदास गिरिधरन लाल सिर कसूंभी पीत घटा॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 50)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : कुम्भनदास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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