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साधो, सो सतगुरु मोंहि भावै

sadho, so satguru monhi bhawai

कबीर

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कबीर

साधो, सो सतगुरु मोंहि भावै

कबीर

और अधिककबीर

    साधो, सो सतगुरु मोंहि भावै।

    सत्त प्रेम का भर भर प्याला, आप पिवै मोंहि प्यावै।

    परदा दूर करै आँखिन का, ब्रह्म दरस दिखलावै।

    जिस दरसन में सब लोक दरसै, अनहद सबद सुनावै।

    एकहि सब सुख-दु:ख दिखलावै, सबद में सुरत समावै।

    कहैं कबीर ताको भय नाहीं, निर्भय पद परसावै।

    साधु, मुझे तो वह सच्चा गुरु प्यारा है जो सच्चाई के प्याले भर-भरकर ख़ुद भी पीता है और मुझे भी पिलाता है। वह आँखों के परदे उठा देता है और ब्रह्म के दर्शन करा देता है। ब्रह्म के दर्शन में सभी लोकों के दर्शन हो जाते हैं और अनहद शब्द सुनाई देता है। वहाँ दु:ख-सुख एक हो जाते हैं और हर शब्द प्रेम-रस से भर जाता है। कबीर कहते हैं कि जिसको मार्ग दिखाने वाला ऐसा गुरु मिल जाए उसे कोई ग़म नहीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
    • संस्करण : 2010

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