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पिता के पत्र पुत्री के नाम (शुरू के आदमी)

pita ke patr putri ke naam (shuru ke adami)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (शुरू के आदमी)

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    मैंने अपने पिछले ख़त में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ़ अक़्ल का फ़र्क़ है। अक़्ल ने आदमी को उन बड़े-बड़े जानवरों से ज़्यादा चालाक और मज़बूत बना दिया जो मामूली तौर पर उसे नष्ट कर डालते। ज्यों-ज्यों आदमी की अक़्ल बढ़ती गई वह ज़्यादा बलवान होता गया। शुरू में आदमी के पास जानवरों से मुक़ाबिला करने के लिए कोई ख़ास हथियार थे। वह उन पर सिर्फ़ पत्थर फेंक सकता था। इसके बाद उसने पत्थर की कुल्हाड़ियाँ और भाले और बहुत सी दूसरी चीज़ें भी बनाई जिनमें पत्थर की सुई भी थी। हमने इन पत्थर के हथियारों को साउथ कैंसिंगटन और जेनेवा के अजायबघरों में देखा था।

    धीरे-धीरे बर्फ़ का ज़माना ख़त्म हो गया जिसका मैंने अपने पिछले ख़त में ज़िक्र किया है। बर्फ़ के पहाड़ मध्य एशिया और यूरोप से ग़ायब हो गए। ज्यों-ज्यों गर्मी बढ़ती गई आदमी फैलते गए।

    उस ज़माने में तो मकान थे और कोई दूसरी इमारत थी। लोग गुफ़ाओं में रहते थे। खेती करना किसी को आता था। लोग जंगली फल वग़ैरा खाते थे, या जानवरों का शिकार करके मांस खाकर रहते थे। रोटी और भात उन्हें कहाँ मयस्सर होता क्योंकि उन्हें खेती करनी आती ही थी। वे पकाना भी नहीं जानते थे, हाँ शायद मांस को आग में गर्म कर लेते हों। उनके पास पकाने के बर्तन, जैसे कढ़ाई और पतीली भी थे।

    एक बात बड़ी अजीब है। इन जंगली आदमियों को तस्वीर खींचना आता था। यह सच है कि उनके पास काग़ज़, क़लम, पेंसिल या ब्रश थे। उनके पास सिर्फ़ पत्थर की सुइयाँ और नोकदार औज़ार थे। इन्हीं से वे गुफ़ाओं की दीवारों पर जानवरों की तस्वीरें बनाया करते थे। उनके बाजे-बाजे खाके ख़ासे अच्छे हैं मगर वे सब इकरुख़े हैं। तुम्हें मालूम है कि इकरुख़ी तस्वीर खींचना आसान है और बच्चे इसी तरह की तस्वीरें खिंचा करते हैं। गुफ़ाओं में अँधेरा होता था इसलिए मुमकिन है कि वे चिराग़ जलाते हों।

    जिन आदमियों का हमने ऊपर ज़िक्र किया है वे पाषाण—पत्थर—युग के आदमी कहलाते हैं। उस ज़माने को पत्थर का युग इसलिए कहते हैं कि आदमी अपने सभी औज़ार पत्थर के बनाते थे। धातुओं को काम में लाना वे जानते थे। आजकल हमारी अक्सर चीज़ें धातुओं से बनती हैं, ख़ासकर लोहे से। लेकिन उस ज़माने में किसी को लोहे या काँसे का पता था। इसलिए पत्थर काम में लाया जाता था, हालाँकि उससे कोई काम करना बहुत मुश्किल था।

    पाषाण युग के ख़त्म होने के पहले ही दुनिया की आव-हवा बदल गई और उसमें गर्मी गई। बर्फ़ के पहाड़ अब उत्तरी सागर तक ही रहते थे और मध्य एशिया और यूरोप में बड़े-बड़े जंगल पैदा हो गए। इन्हीं जंगलों में आदमियों की एक नई जाति रहने लगी। ये लोग बहुत सी बातों में पत्थर के युग के आद‌मियों से ज़्यादा होशियार थे। लेकिन वे भी पत्थर के ही औज़ार बनाते थे। ये लोग भी पत्थर ही के युग के थे; मगर वह पिछला पत्थर का युग था, इसलिए वे नए पत्थर के युग के आदमी कहलाते थे।

    ग़ौर से देखने से मालूम होता है कि नए पत्थर के युग के आदमियों ने बड़ी तरक़्क़ी कर ली थी। आदमी की अक़्ल और जानवरों के मुक़ाबिले में उसे बड़ी तेज़ी से बढ़ाए लिए जा रही है। इन्हीं नए पाषाण-युग के आदमियों ने एक बहुत बड़ी चीज़ निकाली। यह खेती करने का तरीक़ा था। उन्होंने खेतों को जोतकर खाने की चीज़ें पैदा करनी शुरू कीं। उनके लिए यह बहुत बड़ी बात थी। अब उन्हें आसानी से खाना मिल जाता था, इसकी ज़रूरत थी कि वे रात दिन जानवरों का शिकार करते रहें। अब उन्हें सोचने और आराम करने की ज़्यादा फ़ुर्सत मिलने लगी। और उन्हें जितनी ही ज़्यादा फ़ुर्सत मिलती थी, नई चीज़ों और तरीक़ों के निकालने में वे उतनी ही ज़्यादा तरक़्क़ी करते थे। उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाने शुरू किए और उनकी मदद से अपना खाना पकाने लगे। पत्थर के औज़ार भी अब ज़्यादा अच्छे बनने लगे और उन पर पालिश भी अच्छी होने लगी। उन्होंने गाय, कुत्ता, भेड़, बकरी वग़ैरा जानवरों को पालना सीख लिया और वे कपड़े भी चुनने लगे।

    वे छोटे-छोटे घरों या झोपड़ों में रहते थे। ये झोपड़े अक्सर झीलों के बीच में बनाए जाते थे क्योंकि जंगली जानवर या दूसरे आदमी वहाँ उन पर आसानी से हमला कर सकते थे। इसलिए ये लोग झील के रहने वाले कहलाते थे।

    तुम्हें अचंभा होता होगा कि इन आदमियों के बारे में हमें इतनी बातें कैसे मालूम हो गईं। उन्होंने कोई किताब तो नहीं लिखी। लेकिन मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि इन आदमियों का हाल जिस किताब में हमें मिलता है वह संसार की किताब है। उसे पढ़ना आसान नहीं है। उसके लिए बड़े अभ्यास की ज़रूरत है। बहुत से आदमियों ने इस किताब के पढ़ने में अपनी सारी उम्र ख़त्म कर दी है। उन्होंने बहुत सी हड्डियाँ और पुराने ज़माने की वहुत सी निशानियाँ जमा कर दी हैं। ये चीज़ें बड़े-चड़े अजायबघरों में जमा हैं, और वहाँ हम उम्दा चमकती हुई कुल्हाड़ियाँ और बर्तन, पत्थर के तीर और सुइयाँ, और बहुत सी दूसरी चीज़ें देख सकते हैं, जो पिछले पत्थर के युग के आदमी बनाते थे। तुमने ख़ुद इनमें से बहुत सी चीज़ें देखी हैं लेकिन शायद तुम्हें याद हो। अगर तुम फिर उन्हें देखो तो ज़्यादा अच्छी तरह समझ सकोगी।

    मुझे याद आता है कि जेनेवा के अजायबघर में झील के मकान का एक बहुत अच्छा नमूना रखा हुआ था। झील में लकड़ी के डंडे गाड़ दिए गए थे और उनके ऊपर लकड़ी के तख़्ते बाँध कर उन पर झोपड़ियाँ बनाई गई थीं। इस घर और ज़मीन के बीच में एक छोटा सा पुल बना दिया गया था। ये पिछले पत्थर के युग वाले आदमी जानवरों की खालें पहनते थे और कभी-कभी सन के मोटे कपड़े भी पहनते थे। सन एक पौधा है जिसके रेशों से कपड़ा बनता है। आजकल महीन कपड़े सन से बनाए जाते हैं। लेकिन उस ज़माने के सन के कपड़े बहुत ही भद्दे रहे होंगे।

    ये लोग इसी तरह तरक़्क़ी करते चले गए; यहाँ तक कि उन्होंने ताँबे और काँसे के औज़ार बनाने शुरू किए। तुम्हें मालूम है कि काँसा, ताँबे और राँगे के मेल से बनता है और इन दोनों से ज़्यादा सख़्त होता है। वे सोने का इस्तेमाल करना भी जानते थे और इसके ज़ेवर बनाकर इतराते थे।

    हमें यह ठीक तो मालूम नहीं कि इन लोगों को हुए कितने दिन गुज़रे लेकिन अंदाज़ से मालूम होता है कि दस हज़ार साल से कम हुए होंगे। अभी तक तो हम लाखों बरसों की बात कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे हम आजकल के ज़माने के क़रीब आते जाते हैं। नए पाषाण के युग के आदमियों में और आजकल के आदमियों में यकायक कोई तब्दीली नहीं गई। फिर भी हम उनके से नहीं हैं। जो कुछ तब्दीलियाँ हुई बहुत धीरे-धीरे हुई और यही प्रकृति का नियम है। तरह-तरह की क़ौमें पैदा हुई और हर एक क़ौम के रहन-सहन का ढंग अलग था। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों की आव-हवा में बहुत फ़र्क़ था और आदमियों को अपना रहन-सहन उसी के मुताबिक बनाना पड़ता था। इस तरह लोगों में तब्दीलियाँ होती जाती थीं। लेकिन इस बात का ज़िक्र हम आगे चल कर करेंगे।

    आज मैं तुमसे सिर्फ़ एक बात का ज़िक्र और करूँगा। जब नया पत्थर का युग ख़त्म हो रहा था तो आदमी पर एक बड़ी आफ़त आई। मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि उस ज़माने में भूमध्य सागर था ही नहीं। वहाँ चंद झीलें थीं और इन्हीं में लोग आबाद थे। यकायक यूरोप और अफ़्रीका के बीच में जिव्राल्टर के पास ज़मीन बह गई और अटलांटिक समुद्र का पानी उस नीचे खड्ड में भर आया। इस बाढ़ में बहुत से मर्द और औरतें जो वहाँ रहते थे डूब गए होंगे। भागकर जाते कहाँ? सैकड़ों मील तक पानी के सिवा कुछ नज़र ही आता था। अटलांटिक सागर का पानी बराबर भरता गया और इतना भरा कि भूमध्य सागर बन गया।

    तुमने शायद पढ़ा होगा, कम से कम सुना तो है ही, कि किसी ज़माने में बड़ी भारी बाढ़ आई थी। बाइबिल में इसका ज़िक्र है और बाज संस्कृत की किताबों में भी उसकी चर्चा आई है। हम तो समझते हैं कि भूमध्य सागर का भरनाही वह बाढ़ होगी। यह इतनी बड़ी आफ़त थी कि इससे बहुत थोड़े आदमी बचे होंगे। और उन्होंने अपने बच्चों से यह हाल कहा होगा। उन बच्चों को यह बात याद रही होगी और उन्होंने अपने बच्चों से कही होगी। इसी तरह यह कहानी हम तक पहुँची।

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