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पिता के पत्र पुत्री के नाम (पीछे की तरफ़ एक नज़र)

pita ke patr putri ke naam (pichhe ki taraf ek nazar)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (पीछे की तरफ़ एक नज़र)

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    तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! ज़रा दम लेना चाहती होगी। ख़ैर, कुछ अरसे तक मैं तुम्हें नई बातें लिखूँगा। हमने थोड़े से ख़तों में हज़ारों लाखों बरसों की दौड़ लगा डाली है। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ हम देख आए हैं उस पर तुम ज़रा ग़ौर करो। हम उस ज़माने से चले थे जब ज़मीन सूरज ही का एक हिस्सा थी, तब वह उससे अलग हो कर धीरे-धीरे ठंडी हो गई। उसके बाद चाँद ने उछाल मारी और ज़मीन से निकल भागा—मुद्दतों तक यहाँ कोई जानदार था। तब लाखों, करोड़ों बरसों में, धीरे-धीरे जानदारों की पैदाइश हुई। दस लाख बरसों की मुद्दत कितनी होती है, इसका तुम्हें कुछ अंदाज़ा होता है? इतनी बड़ी मुद्दत का अंदाज़ा करना निहायत मुश्किल है। तुम अभी कुछ दस बरस की हो और कितनी बड़ी हो गई हो! खासी कुमारी हो गई हो। तुम्हारे लिए सौ साल ही बहुत हैं। फिर कहाँ हज़ार, और कहाँ लाख जिसमें सौ हज़ार होते हैं! हमारा छोटा सा सिर इसका ठीक अंदाज़ा कर ही नहीं सकता। लेकिन हम अपने दिल में कितनी शान की लेते हैं और ज़रा-ज़रा सी बातों पर झुँझला उठते हैं, और घबरा जाते हैं। लेकिन दुनिया के इस पुराने इतिहास में इन छोटी-छोटी बातों की हक़ीक़त ही क्या? इतिहास के इन अपार युगों का हाल पढ़ने और उन पर विचार करने से हमारी आँखें खुल जाएँगी और हम छोटी-छोटी बातों से परेशान होंगे।

    ज़रा उन बेशुमार मुद्दतों का ख़याल करो जब किसी जानदार का नाम तक था। फिर उस लंबे ज़माने को सोचो जब सिर्फ़ समुद्र के जंतु ही थे। दुनिया में कहीं आदमी का पता नहीं है। जानवर पैदा होते हैं और लाखों साल तक बेखटके इधर-उधर कुलेलें किया करते हैं। कोई आदमी नहीं है जो उनका शिकार कर सके। और अंत में जब आदमी पैदा भी होता है तो बिल्कुल बित्ते भर का, नन्हा सा, सब जानवरों से कमज़ोर! धीरे-धीरे हज़ारों बरसों में वह ज़्यादा मज़बूत और होशियार हो जाता है, यहाँ तक कि वह दुनिया के जानवरों का मालिक हो जाता है। और दूसरे जानवर उसके तावेदार और ग़ुलाम हो जाते हैं और उसके इशारों पर चलने लगते हैं।

    तब सभ्यता के फैलने का ज़माना आता है। हम इसकी शुरुआत देख चुके हैं। अब हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि आगे चलकर उसकी क्या हालत हुई। अब हमें लाखों बरसों का ज़िक्र करना नहीं है। पिछले ख़तों में हम तीन-चार हज़ार साल पहले के ज़माने तक पहुँच गए थे। लेकिन इधर के तीन-चार हज़ार बरसों का हाल हमें उधर के लाखों बरसों से ज़्यादा मालूम है। आदमी के इतिहास की तरक़्क़ी दरअसल इन्हीं तीन हज़ार बरसों में हुई है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम इस इतिहास के बारे में बहुत कुछ पढ़ोगी। मैं इसके बारे में कुछ थोड़ा सा लिखूँगा जिससे तुम्हें कुछ ख़याल हो जाए कि इस छोटी-सी दुनिया में आदमी पर क्या-क्या गुज़री।

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