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पिता के पत्र पुत्री के नाम (ज़बानों का आपस में रिश्ता)

pita ke patr putri ke naam (jambanon ka aapas mein rishta)

जवाहरलाल नेहरू

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पिता के पत्र पुत्री के नाम (ज़बानों का आपस में रिश्ता)

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    हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी ज़बान थी उसे अपने साथ लेते गए। लेकिन तरह-तरह की हालातों ने आर्यों की बड़ी-बड़ी जातियों में बहुत फ़र्क़ पैदा कर दिया। हर एक जाति अपने ही ढंग पर बदलती गई और उसकी आदतें और रस्सें भी बदलती गई। वे दूसरे मुल्कों में दूसरी जातियों से मिल सकते थे, क्योंकि उस ज़माने में सफ़र करना बहुत मुश्किल था, एक गिरोह दूसरे से अलग होता था। अगर एक मुल्क के आदमियों को कोई नई बात मालूम हो जाती, तो वे उसे दूसरे मुल्क वालों को बतला सकते। इस तरह तब्दीलियाँ होती गई और कई पुश्तों के बाद एक आर्य जाति के बहुत से टुकड़े हो गए। शायद वे यह भी भूल गए कि हम एक ही बड़े ख़ानदान से हैं। उनकी एक ज़बान से बहुत सी ज़बानें पैदा हो गई जो आपस में बहुत कम मिलती-जुलती थीं।

    लेकिन गो उनमें इतना फ़र्क़ मालूम होता था, उनमें बहुत से शब्द एक ही थे, और कई दूसरी बातें भी मिलती-जुलती थीं। आज हज़ारों साल के बाद भी हमें तरह-तरह की भाषाओँ में एक ही शब्द मिलते हैं। इससे मालूम होता है कि फ़्रांसीसी और अँग्रेज़ी में बहुत से एक ही शब्द हैं। दो बहुत घरेलू और मामूली शब्द ले लो, “फ़ादर” और “मदर”। हिंदी और संस्कृत में यह शब्द “पिता” और “माता” हैं। लैटिन में वे “पेटर” और “मेटर” हैं; यूनान में “पेटर” और “मीटर”; जर्मन में “फ़ाटेर” और “मुत्तर”; फ़्रांसीसी में “पेर” और “मेर” और इसी तरह और ज़बानों में भी। ये शब्द आपस में कितने मिलते-जुलते हैं! भाई-बहनों की तरह उनकी सूरतें कितनी समान हैं! यह सच है कि बहुत से शब्द एक भाषा से दूसरी भाषा में गए होंगे। हिंदी ने बहुत से शब्द अँग्रेज़ी से लिए हैं और अँग्रेज़ी ने भी कुछ शब्द हिंदी से लिए हैं। लेकिन फ़ादर और मदर इस तरह कभी लिए गए होंगे। ये नए शब्द नहीं हो सकते। शुरू-शुरू में जब लोगों ने एक दूसरे से बात करनी सीखी तो उस वक़्त माँ-बाप तो थे ही उनके लिए शब्द भी बन गए। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये शब्द बाहर से नहीं आए। वे एक ही पुरखे या एक ही ख़ानदान से निकले होंगे। और इससे हमें मालूम हो सकता है कि जो क़ौमें आज दूर-दूर के मुल्कों में रहती हैं और भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलती हैं वे सब किसी ज़माने में एक ही बड़े ख़ानदान की रही होंगी। तुमने देख लिया कि ज़बानों का सीखना कितना दिलचस्प है और उससे हमें कितनी बातें मालूम होती हैं। अगर हम तीन चार ज़बानें जान जाएँ तो और ज़बानों का सीखना आसान हो जाता है।

    तुमने यह भी देखा कि बहुत से आदमी जो अब दूर-दूर मुल्कों में एक-दूसरे से अलग रहते हैं किसी ज़माने में एक ही क़ौम के थे। तब से हम में बहुत फ़र्क़ हो गया है और हम अपने पुराने रिश्ते भूल गए हैं। हर एक मुल्क के आदमी ख़याल करते हैं कि हमीं सब से अच्छे और अक़्लमंद हैं और दूसरी जातें हमसे घटिया हैं। अँग्रेज़ ख़याल करता है कि वह और उसका मुल्क सबसे अच्छा है; फ़्रांसीसी को अपने मुल्क और सभी फ़्रांसीसी चीज़ो पर घमंड है; जर्मन और इटालियन अपने मुल्कों को सबसे ऊँचा समझते हैं। और बहुत से हिंदुस्तानियों का ख़याल है कि हिंदुस्तान बहुत सी बातों में सारी दुनिया से बढ़ा हुआ है। यह सब डींग है। हरेक आदमी अपने को और अपने मुल्क को अच्छा समझता है लेकिन दरअसल कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसमें कुछ ऐब और कुछ हुनर हों। इसी तरह कोई ऐसा मुल्क नहीं है जिसमें कुछ बातें अच्छी और कुछ बुरी हों। हमें जहाँ कहीं अच्छी बात मिले उसे ले लेना चाहिए और बुराई जहाँ कहीं हो उसे दूर कर देना चाहिए। हमको तो अपने मुल्क हिंदुस्तान की ही सब से ज़्यादा फ़िक्र है। हमारे दुर्भाग्य से इसका ज़माना आजकल बहुत ख़राब है और बहुत से आदमी ग़रीब और दुखी हैं। उन्हें अपनी ज़िंदगी में कोई ख़ुशी नहीं है। हमें इसका पता लगाना है कि हम उन्हें कैसे ज़्यादा सुखी बना सकते हैं। हमें यह देखना है कि हमारे रस्म रिवाज में क्या ख़ूबियाँ हैं और उनको बचाने की कोशिश करना है, जो बुराइयाँ हैं उन्हें दूर करना है। अगर हमें दूसरे मुल्कों में कोई अच्छी बात मिले तो उसे ज़रूर ले लेना चाहिए।

    हम हिंदुस्तानी हैं और हमें हिंदुस्तान में रहना और उसी की भलाई के लिए काम करना है। लेकिन हमें यह भूलना चाहिए कि दुनिया के और हिस्सों के रहने वाले हमारे रिश्तेदार और कुटुंबी हैं। क्या ही अच्छी बात होती अगर दुनिया के सभी आदमी ख़ुश और सुखी होते। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सारी दुनिया ऐसी हो जाए जहाँ लोग चैन से रह सकें।

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