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पिता के पत्र पुत्री के नाम (चीन और हिंदुस्तान)

pita ke patr putri ke naam (cheen aur hindustan)

जवाहरलाल नेहरू

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जवाहरलाल नेहरू

पिता के पत्र पुत्री के नाम (चीन और हिंदुस्तान)

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    हम लिख चुके हैं कि शुरू में मेसोपोटैमिया, मिस्र और भूमध्य सागर के छोटे से टापू क्रीट में सभ्यता शुरू हुई और फैली। उसी ज़माने में चीन और हिंदुस्तान में भी ऊँचे दर्जे की सभ्यता शुरू हुई और अपने ढंग पर फैली।

    दूसरी जगहों की तरह चीन में भी लोग बड़ी नदियों की घाटियों में आबाद हुए। यह उस जाति के लोग थे जिन्हें मंगोल कहते हैं। वे पीपल के ख़ूबसूरत बर्तन बनाते थे और कुछ दिनों बाद लोहे के बर्तन भी बनाने लगे। उन्होंने नहरें और अच्छी-अच्छी इमारतें बनाई, और लिखने का एक नया ढंग निकाला। यह लिखावट हिंदी, उर्दू या अँगरेज़ी से बिल्कुल नहीं मिलती। यह एक क़िस्म की तस्वीरदार लिखावट थी। हर एक शब्द और कभी-कभी छोटे-छोटे जुमलों की भी तस्वीर होती थी। पुराने ज़माने में मिस्र, क्रीट और बाबुल में भी तस्वीरदार लिखावट होती थी। उसे अब चित्रलिपि कहते हैं। तुमने यह लिखावट अजायबघर की बाज किताबों में देखी होगी। मिस्र और पश्चिम के मुल्कों में यह लिखावट सिर्फ़ बहुत पुरानी इमारतों में पाई जाती है। उन मुल्कों में इस लिखावट का बहुत दिनों तक रिवाज नहीं रहा। लेकिन चीन में अब भी एक क़िस्म की तस्वीरदार लिखावट मौजूद है और ऊपर से नीचे को लिखी जाती है। अँग्रेज़ी या हिंदी की तरह बाएँ से दाईं तरफ़ या उर्दू की तरह दाहिने से बाईं तरफ़ नहीं।

    हिंदुस्तान में बहुत सी पुराने ज़माने की इमारतों के खंडहर शायद अभी तक ज़मीन में नीचे दबे पड़े हैं। जब तक उन्हें कोई खोद निकाले तब तक हमें उनका पता नहीं चलता। लेकिन उत्तर में बाज बहुत पुराने खंडहरों की खुदाई हो चुकी है। यह तो हमें मालूम ही है कि बहुत पुराने ज़माने में जब आर्य लोग हिंदुस्तान में आए तो यहाँ द्रविड़ जाति के लोग रहते थे। और उनकी सभ्यता भी ऊँचे दर्जे की थी। वे दूसरे मुल्क वालों के साथ व्यापार करते थे। वे अपनी बनाई हुई बहुत सी चीज़ें मेसोपोटैमिया और मिस्र में भेजा करते थे। समुद्री रास्ते से वे ख़ासकर चावल और मसाले और साखू की इमारती लकड़ियाँ भी भेजा करते थे। कहा जाता है कि मेसोपोटैमिया के 'उर' नामी शहर के बहुत से पुराने महल दक्षिणी हिंदुस्तान से आई हुई साखू की लकड़ी के थे। यह भी कहा जाता है कि सोना, मोती, हाथीदाँत, मोर और बंदर हिंदुस्तान से पश्चिम के मुल्कों को भेजे जाते थे। इससे मालूम होता है कि उस ज़माने में हिंदुस्तान और दूसरे मुल्कों में बहुत व्यापार होता था। व्यापार जभी बढ़ता है जब लोग सभ्य होते हैं।

    उस ज़माने में हिंदुस्तान और चीन में छोटी-छोटी रियासतें या राज थे। इनमें से किसी मुल्क में भी एक राज था। हर-एक छोटा शहर जिसमें कुछ गाँव और खेत होते थे एक अलग राज होता था। ये शहरी रियासतें कहलाती हैं। उस पुराने ज़माने में भी इनमें से बहुत सी रियासतों में पंचायती राज था। बादशाह थे, राज का इंतज़ाम करने के लिए चुने हुए आद‌मियों की एक पंचायत होती थी। फिर भी बाज़ रियासतों में राजा का राज था। जोकि इन शहरी रियासतों की सरकारें अलग होती थीं, लेकिन कभी-कभी वे एक दूसरे की मदद किया करती थीं। कभी-कभी एक बड़ी रियासत कई छोटी रियासतों की अगुआ बन जाती थी।

    चीन में कुछ ही दिनों बाद इन छोटी-छोटी रियासतों को जगह एक बहुत बड़ा राज हो गया। इसी राज के ज़माने में चीन की बड़ी दीवार बनाई गई थी। तुमने इस बड़ी दीवार का हाल पढ़ा है। वह कितनी अजीबोग़रीब चीज़ है। वह समुद्र के किनारे से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों तक बनाई गई थी, ताकि मंगोल जाति के लोग चीन में घुसकर सकें। यह दीवार 1400 मिल लंबी, 20 से 30 फ़ीट तक ऊँची और 25 फ़ीट चौड़ी है। थोड़ी-थोड़ी दूर पर क़िले और बुर्ज हैं। अगर ऐसी दीवार हिंदुस्तान में बने तो वह उत्तर में लाहौर से लेकर दक्षिण में मद्रास तक चली जाएगी। वह दीवार अब भी मौजूद है और अगर तुम चीन जाओ तो उसे देख सकती हो।

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