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ऐसे हिय में बसत रहौ

aise hiy mein basat rahau

ध्रुवदास

अन्य

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ध्रुवदास

ऐसे हिय में बसत रहौ

ध्रुवदास

और अधिकध्रुवदास

    ऐसे हिय में बसत रहौ, नवल किशोर रस रासि।

    चितवनि अति अनुराग की, करत मंद मृदु हाँसि॥

    करत मंद मृदु हाँसि, दोउ होत जु प्रेम प्रकास।

    छके रहत मदमत्त गति, आनंद मदन बिलास॥

    हित ध्रुव छबि सों कुंज में, दै अंशनि भुज घैसे।

    मेरी मत इति नाहिं कहौं, उपमा दै ऐसे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री बयालीस लीला (पृष्ठ 66)
    • रचनाकार : ध्रुवदास
    • प्रकाशन : श्री मुकुट महल, वृंदावन
    • संस्करण : 1953

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