हेमंत वर्णन

hemant warnan

अब्दुल रहमान

अब्दुल रहमान

हेमंत वर्णन

अब्दुल रहमान

सुरहि गंधु रमणीउ सरउ इम बोलियउ।

पावासुय अइधिट्ठि वलि घरु संभरिउ॥

इम अच्छउ जं करुण मयणपडिभिन्नसरि।

अवलोइय धवलहर सेय तुस्सारभरि॥

जलिउ पहिय! सव्वंगु विरहहवि तडयडवि।

सरपमुक्क कंदप्प दप्पि धणु कडयडवि॥

तं सिज्जहि दुक्खित्त आयउ चित्तहरु।

पर मंडलु हिडंतु कवालिउ खलु सबरु॥

कह कंखिरी अणियत्ति णियंती दिसि पसरु।

लइ ढुक्कउ कोसिल्लि हिमंतु तुसार भरु॥

हुइय अणायर सोयल भुवणिहि पहिय! जल।

ओसारिय सत्थरहु सयल कंदुट्टदल॥

सेरधिहिँ धणासारु चंदणु पासियइ।

अहरकओलालकिहिँ मयणु सँमी सियइ॥

सीहंडिहिँ वज्जियउ घुसिणु तणि लेवियइ।

चंपएलु मियणाहिण सरिसउ सेवियउ॥

णहु दलियइ कप्पूर सरिसु जाईहलह।

दिज्जइ केवइ वासु पयडउ फोफलह॥

भुवणुप्परु परिहरवि पसुप्पइ जामिणिहि।

ओयरइहि पल्लंग बिछाइय कामिणिहि॥

धूइज्जइ तह अगरु गुसिणु तणि लाइयइ।

गाढ़उ निवडालिंगणु अंगि सुहाइयइ॥

अन्नह दिवसह सन्निहि अंगुलमत्त हुय।

महु इक्कह परि पहिय! णिवेहिय बम्हजुय॥

विलवंती अलहंत निंद निसि दीहरिहि।

पढ़िय वत्थु तह पंथिय इक्कल्लिय घरिहि॥

दीहउसासिहि दीहरयणि मह गइय णिरक्खर!

आइ णिद्दय! णिंद तुज्झ सुयरंतिय तक्खर॥

अंगिहिँ तुह अलहंत धिट्ठ! करयलफरिसु।

संसोसिउ तणु हिमिंण हाम हेमह सरिसु॥

पराग की सुगंध से रमणीक शरद व्यतीत हुआ। बहुत धृष्ट, दुष्ट, परदेसी ने घर का स्मरण नहीं किया। इस प्रकार कामदेव के वाणों से प्रतिभिन्न मैंने ओलों के भार से श्वेत गृहों को देखा। हे पथिक! विरहाग्नि से ‘तड़ तड़’ कर पूरी देह जल उठी। कामदेव दंभ से धनुष कड़-कड़ाकर वाण छोड़ने लगा। दुःख से पीड़िता की शय्या के निकट वह चितचौर नहीं आया। परदेश में ही वह कापालिक दुष्ट भील घूमता रहा। मुझ उत्कंठिता, बेचैन के दिशा प्रसार को देखते-देखते हेमंत तुषार भार की भेंट लेकर पहुँचा। महल में शीतल जल का अनादर हो गया। बिछौने पर से कमल दल हटा दिए गए।

दासियाँ कपूर और चंदन नहीं पीसतीं। होंठ और गाल के प्रसाधनों में मोम मिला दिया जाता है ताकि वे फटें नहीं। अधर कपोल और कमर में काम बढ़ गया। शरीर पर श्रीखंड रहित कुंकुम का लेप किया जाता हैं, चंपक तैल का मृगनाभि के साथ सेवन किया जाता है। जातीफल के साथ कपूर नहीं दला जाता है। सुपारी में केतकी का बांस नहीं दिया जाता। रात्रि में भवन में ऊपरी भाग में सोना छोड़कर कामिनियों ने घर के अंदर पलंग बिछाए। अगर का धूप दिया जाता है, तन पर कुंकुम का लेप किया जाता है, अंगों को प्रगाढ़ आलिंगन सुख दिया जाता है। अन्य दिनों की तुलना में ये दिन अँगुलि मात्र रह गए। हे पथिक! एक दिन मेरे लिए ब्रह्मा का एक युग हो गया। हे पथिक! लंबी रात्रि में निद्रा लाभ कर पाती हुई और रोती-कलपती घर में अकेली ने मैंने यह पढ़ा। हे निरक्षर! लंबी साँसे लेते हुए मेरी रात्रि बीती है। तस्कर! निर्दय! तुम्हारा स्मरण करती हुई मुझे नींद नहीं आई। धृष्ट! तुम्हारे हथेलियों का स्पर्श पाने से हेमंत ने मेरे शरीर को उसी प्रकार सुखा डाला है जैसे घाम ठंडक को सुखा डालता है। हे कांत! हेमंत में विलपती हुई को वापस आकर यदि इस समय आश्वासन नहीं दोगे तो क्या मेरे मरने के बाद आओगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : संदेश रासक (पृष्ठ 186)
  • रचनाकार : अब्दुल रहमान
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 1991

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