Font by Mehr Nastaliq Web

भीष्म परमधाम गमन वर्णन

gada yudh duryodhan wadh warnan

छत्र कवि

छत्र कवि

भीष्म परमधाम गमन वर्णन

छत्र कवि

 

(दोहा)

सूत्यो जान्यो कटक दल, नंदीघोष रथ पाय।
दूर गये लै कृष्ण तब, पांडु पुत्र सुख पाय॥

उतरे रथ ते अनुज युत, तब हीं भुव भरतार।
धसत कृष्ण रथ ते तबै, उठी अगिनि की धार॥

नंदिघोष जरि भस्म भो, कह्यो न कौतुक जाय।
यह लखि कै पांचै अनुज, संभ्रम रहे भुलाय॥

(श्रीकृष्णउवाच)

भीष्म गुरु अरु कर्ण के, शरन दयो रथ जारि।
याको अब परभाव सुनि, प्रगट्यो भेद मुरारि॥

(चौपाई)

जौ लगि हौं रथ ऊपर रह्यो।
तब लगि सो बाणन नहिं दह्यो॥
जब हौं धंसि भुव ऊपर आयो।
नंदिघोष तिन शरन जरायो॥
हरि चरित्र तिन ऐसो देख्यो।
बरण्यो जाय न अद्भुत लेख्यो॥
दुर्योधन जहँ रण में पर्यो।
द्रोणपुत्र तिहि थल पगु धर्यो॥

(अश्वत्मामाउवाच) 

आयसु दे कुरुनंदन मोको।
दुष्ट हनौं बहु दै सुख तोको॥
पैज करी यहि भांति भनैसो।
पार्थ युधिष्ठिर कौन गनैसो॥
सेन रही सोइ आज सँहारों।
बंधव पाँच तुरंतहि मारों॥
जीवत मोहिं परे सुख सोवैं।
आजु सबै यम को मुख जोवैं॥

(चामरछंद)

पंच बंधु मारि आजु पंच शीश लायहौं।
तबै महीप तोहिं मुःख आयकै देखाय हौं॥
वेगिकै कृपालु ह्वै नरेश भागि जो सकै।
गाजिकै चल्यो बली सरोष चित्त माँझकै॥

(कुंडलिया)

वैर पिता को आजु ही, लेहौं दल संहारि।
और हनौं वर पांडुसुत, धृष्टद्युम्न को मारि॥
धृष्टद्युम्न को मारि सकल मनभायो करिहौं।
वृद्ध तरुण शिशु बाल चित्त में एक न धरिहौं॥
धरिहौं शंक न अंक हतौं उस संशय जाको।
सोई करिहौं काज मिलाऊं वैर पिता को॥

(दोहा)

चलि सौ पहुँच्यो दल निकट, द्रोण पुत्र युत कुद्ध।
पुरुष एक ठाढ़ो भयो, तासों कीनो युद्ध॥
द्रोणपुत्र कीन्हों तहां, दो घटिका संग्राम।
बहु संतुष्ट कियो सुनर, तब कीन्हो विश्राम॥

(चौपाई)

तब तिहि पुरुष दया बहु करी।
माँगु माँगु यहि विधि अनुसरी॥
जोई बर तेरे मन भावै।
माँगत ही सौ मोपै पावै॥

(अश्वत्थामाउवाच)

वीर अबीर सबै अरि मारौं।
पांडुसुतन युत भट संहारौं॥
यहै दया करिकै बर दीजै।
परम अनुग्रह मोपै कीजै॥
एवमस्तु करि दीनो जान।
गयो कटक में गहे कृपान॥
सोते कुँवर शिखंडी देख्यो।
भारत भयते निर्भय लेख्यो॥

(दोहा)

प्रथम प्रहार्यो सो कुँवर, धृष्टद्युन्म को जाय।
वाम चरण छाती हन्यो, सोवत बीर जगाय॥
उठन न पायो बीर सो, मार्यो दुःख दिखाय।
द्रुपदसुता के पंच सुत, तेऊ मारे जाए॥
अर्द्ध रैनि लौं सब कटक, ठाम-ठाम संहारि।
एक क्षोहिणी दल हन्यो, चल्यो सकल भुव डारि॥
पंचाली के सुतन के, शीश काटि लै हाथ।
तब पहुँच्यो तिहि ठाम जहँ, दुर्योधन नरनाथ॥

(अश्वत्थामाउवाच)

धर्मपुत्र को आदि दै, शिर लै आयों काटि।
दुर्योधन उर सुख भयो, ताके करते डाटि॥

(त्रोटक छन्द)

सुख दुःख समान भयो जबहीं।
नरनायक प्राण तजे तबहीं॥
चलि भूप युधिष्ठिर गेह गयो।
लखिकै दलते भयभीत भयो॥

(राजोवाच)

सुत द्रोण कहा यह कर्म कियो।
शिशु मारि कहा अपराध लियो॥
बहु दुःख धनंजय चित्त धर्यो।
अपने उर में बहु क्रोध कर्यो॥
भगिकै अब सो अरि जाय कहाँ।
अब हीं हति हौं पुनि वेगि तहाँ॥
रुकि कै तब हीं रथ और सज्यो।
तिहि रोष नहीं पल एक तज्यो॥
सुनिकै गुरुपुत्र भज्यो तबहीं।
बहु पारथ रोष कर्यो जबही॥
तिन जाय लयो नहीं भाजि सक्यो।
अति व्याकुल ह्वै थहराय थक्यो॥

(दोहा)

अर्जुन योजन एक पै, गुरुसुत लीनो जाय।
जान्यो नहीं उबार तिन, फिन्यो शूर समुहाय॥
उपज्यो अद्भुत युद्ध तहँ, को कवि सकै बखानि।
शर ही शर नभ छायगो, थके शूर नहिं पानि॥
काटत दोऊ परस्पर, बाण समूह अनेक।
एक व्योम में एकधर, करन कटत है एक॥

(चौपाई) 

हारि न मानत दोऊ बीर।
दोऊ समर बली रणधीर॥
एकहि गुरु पै विद्या पाय।
व्योम थली बाणन करि छाय॥
दोऊ रण को तब अलि बढ़े।
एक संग दोउ विद्या पढ़े॥
ब्रह्म अस्त्र कर पारथ लीन्हो।
वही द्रोण सुत योजित कीन्हो॥
उपजी अगिनि दुहुँन ते भारी।
त्रिभुवन कंपे नर अरु नारी॥
हा-हा शब्द सकलपुर ठयो।
महाताप सुर असुरन भयो॥

(सोरठा)

आकंप्यो सुरराज, देखत बहु आतंक उर।
प्रलय होत है आज, इहि विधि जग जन उच्चरत॥

(दोहा)

ब्रह्मबाण क्यों पार्थ को, रण में निष्फल जाय।
शीश फोरिकै मणि लई, तब दीनो मुकराय॥
गर्भ उत्तरा को हन्यो, गुरुसुत कै संधान।
भयो मृतक सुत तिहि समै, सब कुल दुःख निदान॥ 
कृष्ण अनुग्रह सुत जियो, भयो परीक्षित नाम।
चले पार्थ गृह को तबै, रहित भयो संग्राम॥

(चौपाई)

चले हस्तिनापुर सब आये।
नृप धृतराष्ट्र तबै समुझाये॥
भांति-भांति विनयो कर जोरि।
मिटै न होनी किये करोरि॥
भये शुद्ध पानी तिन दियो।
काज कर्म कृति सब विधि कियो॥
रुदन करैं कौरव की नारी।
दुख दावागिनि तैं पर जारी॥
तब भीषम सब त्रिय समुझाई।
होय रचै जो त्रिभुवनराई॥
पांडु पुत्र सब पास बुलाये।
दिन प्रति राजनीति समुझाये॥

(भीष्मउवाच) 

क्रोध वृथा न करो कबहूं न मतो कछु मूढ़न सों करियेजू।
मित्रन को अपमान रचो न दया उर शत्रुन की धरियेजू॥
छत्र सदा पर-स्वारथ कीजिय लोक अलोकन ते डरियेजू।
होउ हठी न छली नरनाथ न वित्त कहूं द्विज को हरियेजू॥

(छप्पय)

दया राखिये अंक भूलि व्रत ही मन करिये।
चुगुल चोर की सौंह चित्त में एक न धरिये॥
सदा रक्षिये ताहि शरण शरणागत आवै।
भूलिहु चित्त प्रबीण नहीं कातरता लावै।
त्रिया काज द्विज गाय के, निज काज न सब परिहरत।
कबिछत्र चलत यहि रीति जो सो नृपता महिमंडल करत॥

(दोहा) 

विरद बड़ाई पायकै, गरब न कीजै चित्त।
ना बिसरहू हरि को हिये, बिसरायो जनि मित्त॥
राजनीति जब सब कही, भांति-भांति समुझाय।
छत्र कृपा करि भक्त वश, श्रीहरि पहुँचे आय॥

(भीष्मउवाच)

सकल भई मन कामना, कलिमल गये नसाई।
अंत अवस्था में सुखद, श्री हरि दरशन पाइ॥

(सवैया)

लाज सदा विरदावलि की कवि छत्र सदा जन को सुखकारी।
धावनि चक्र गहे कर की वह वानि कहूं बिसरै न बिसारी।
केहरि ज्यों उतर्यो गिरिते अवलोकत ही जिमि कुंजर भारी।
वेद की कानि न साधत ज्यों ब्रत राखि कृपानिधि पैज हमारी॥

(दोहा)

करी वंदना कृष्ण की, भीष्म बुद्धिनिधान।
प्राण तजे भीष्म तबै, उत्तर आये भान॥

स्रोत :
  • पुस्तक : विजय मुक्तावली (पृष्ठ 176-179)
  • संपादक : खेमराज श्रीकृष्णदास
  • रचनाकार : छत्र कवि
  • प्रकाशन : श्री वेंकटेश्वर छापाखाना
  • संस्करण : 1896

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY