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पुष्प-वाटिका प्रसंग (पॉंच) : रामचरितमानस

pushp watika prsang (paunch) ha ramacharitmanas

तुलसीदास

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तुलसीदास

पुष्प-वाटिका प्रसंग (पॉंच) : रामचरितमानस

तुलसीदास

केहरि कटि पट पीत धर सुखमा सील निधान।

देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान॥

धरि धीरजु एक अलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी॥

बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूप किसारे देखि कि लेहू॥

सकुचि सीय तब नयन उघारे। सनमुख दोए रघुसिंह निहारे॥

नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा॥

परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहिं सभीता॥

पुनि आउब एहि बरियाँ काली। अस कहि मन बिहँसी एक आली॥

गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी॥

धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरी अपनपउ पितुबस जाने॥

देखन मिस मृग बिहँग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।

निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति थोरि॥

सिंह की-सी कमर वाले, पीतांबर धारण किए हुए सुंदरता और शील के घर और सूर्य-कुल के भूषण राम को देखकर सखियों को अपनी सुध भूल गई।

एक चतुर सखी धीरज धरकर, सीता का हाथ पकड़कर बोली−पार्वती जी का ध्यान फिर कर लेना। राजकुमार को देख क्यों नहीं लेती?

तब सीता ने सकुचाकर नेत्र खोले और उन्होंने रघुकुल के दोनों सिंहों को सामने देखा। सिर से पैर तक राम की शोभा देखकर और फिर पिता का प्रण याद करके उनका मन बहुत क्षुब्ध हो गया।

जब सखियों ने सीता को प्रेम के वश देखा, तब सब भयभीत होकर कहने लगीं−बड़ी देर हो रही है, कल इसी समय फिर आएँगी। ऐसा कहकर एक सखी मन में हँसी।

सखी की मर्म-भरी वाणी सुनकर सीता सकुचा गईं। देर हो गई, यह सोचकर उन्हें माता का भय लगा। बहुत धीरज धरकर, राम को हृदय में ले आकर और अपने को पिता के वश में जानकर वे लौट चलीं।

सीता मृग, पक्षी और वृक्षों को देखने के बहाने बार-बार घूम लेती हैं। राम की छवि देख-देखकर उनकी प्रीति कम नहीं हो रही बल्कि बढ़ रही है।

स्रोत :
  • पुस्तक : श्री रामचरितमानस (पृष्ठ 149)
  • रचनाकार : तुलसी
  • प्रकाशन : लोकभारती
  • संस्करण : 2017

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