Font by Mehr Nastaliq Web

रावरे रूप की रीति अनूप

raavare ruup kii riiti anuup

घनानंद

घनानंद

रावरे रूप की रीति अनूप

घनानंद

रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यौं ज्यौं निहारियै।

त्यौं इन आँखिन बानि अनोखी, अघानि कहूँ नहिं आनि तिहारियै॥

एक ही जीव हुतौ सु तौ वार्यौ, सुजान, संकोच सोच सहारियै।

रोकौ रहै न, दहै घनआनंद बावरी रीझि के हाथन हारियै॥

नायक अपनी प्रियतमा के क्षण-क्षण नवीन दीख पड़ने वाले रूप के प्रति आँखों के रुझान का वर्णन करता हुआ कह रहा है कि सुजान के रूप की तो गति ही अनूठी है, उसे जब-जब देखा जाता है, तब-तब ही उसमें नवीनता दीख पड़ती है। आशय यह है कि क्षण-प्रतिक्षण परिवर्तित होने के कारण उसमें नूतन आकर्षक बना ही रहता है और निरंतर देखने पर भी तृप्ति नहीं होती है। पुनः जिस प्रकार आपके रूप की गति विलक्षण है, उसी प्रकार मेरे नेत्र की आदत भी विचित्र है। ये तुम्हारे रूप के अतिरिक्त और कहीं तृप्त ही नहीं होते हैं। हे सुजान, मेरे पास जो एक मात्र मन था, वह तो तुम्हारे ऊपर न्योछावर कर दिया, अब संकोच और चिंता के समय तुम भी सहारा दो। मैं तो पगली रीझ के हाथों स्वयं को हार चुका हूँ। मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं रह गया है। इसी से वह रीझ मेरे प्रयास करके रोकने पर भी नहीं रुकती है और विषम-प्रेम की स्थिति के कारण मुझे निरंतर जलाती रहती है।

स्रोत :
  • पुस्तक : घनानंद कवित्त (प्रथम आनन) (पृष्ठ 96)
  • संपादक : चंद्रशेखर मिश्र ‘शास्त्री’
  • रचनाकार : घनानंद
  • प्रकाशन : वाणी वितान
  • संस्करण : 1972

संबंधित विषय

यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY