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लाग्यो मास सावन बिदेशी अवठाँवन सों

lagyo mas sawan bideshi awthanwan son

कवींद्र (उदयनाथ)

अन्य

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कवींद्र (उदयनाथ)

लाग्यो मास सावन बिदेशी अवठाँवन सों

कवींद्र (उदयनाथ)

और अधिककवींद्र (उदयनाथ)

    लाग्यो मास सावन बिदेशी अवठाँवन सों,

    आवन लगे हैं कैधों उन्हैं सुघरी नहीं।

    कै वह गाँवन में जाबन कहत कोऊ,

    कैतो गुन गावन की सेझ अगरी नहीं॥

    भनत कबिंद्र मन भावन तिहारे हम,

    पावन को सेवै तकसीर हू परी नहीं।

    हते तो हितावन पै तावन लगे हौ देह,

    दावन लगे हौ की बिदावन करीनहीं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : षट्ऋतु हज़ारा (पृष्ठ 147)
    • संपादक : परमानंद सुहा
    • रचनाकार : कवींद्र
    • प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
    • संस्करण : 1894

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