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कविन सिंगार को सरूप करि मान्यौ तुम्हैं

kawin singar ko sarup kari manyau tumhain

पंडित युगलकिशोर मिश्र

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पंडित युगलकिशोर मिश्र

कविन सिंगार को सरूप करि मान्यौ तुम्हैं

पंडित युगलकिशोर मिश्र

और अधिकपंडित युगलकिशोर मिश्र

    कविन सिंगार को सरूप करि मान्यौ तुम्हैं,

    साँवरे विचारि ताकी उपमा दिये के हौ।

    भादौं की अंध्यारी में जनमि अधराति आये,

    नंद के अजिर याते चोरि हू किये के हौ॥

    साँवरे के साथी सदा जाहिर जगत अरु,

    विषधर साँवरे की गोद में लिये के हौ।

    साँवरी करत औरै ऊपर के साँवरे हौ,

    साँवरे सुजान तुम साँवरे हिये के हो॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 489)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : पंडित युगलकिशोर मिश्र
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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