Font by Mehr Nastaliq Web

रचि-पचि हारे कवि-कोविद बिचारे सब

rachi pachi hare kawi kowid bichare sab

छत्रसाल

अन्य

अन्य

छत्रसाल

रचि-पचि हारे कवि-कोविद बिचारे सब

छत्रसाल

और अधिकछत्रसाल

    रचि-पचि हारे कवि-कोविद बिचारे सब,

    सम्भु रहे ध्यान स्वयंभु रहे गान करि।

    ब्यालपति रहे देखि ख्याल खूब फागनि कौ,

    गौरि रही गोज लै गनेस सिर पानि धरि॥

    औघ रही रंग-पूरि महकि सुगंध रही,

    सरजू हू रही लाल-लाल रंग-स्त्रोत सरि।

    एक ओर कुँवरि-किसोरी, रही छतसाल,

    एक ओर कुँवर-किसोर रहे रंग भरि॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : छत्रसाल-ग्रंथावली (पृष्ठ 41)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : छत्रसाल
    • प्रकाशन : श्रीछत्रसाल-स्मारक-समिति, पन्ना, मध्य प्रदेश
    • संस्करण : 1926

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए