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दारिद दरन भव-भय उधरन चारु

daaridadran bhavbhay.udhran chaaru baarij-

गोकुलनाथ

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गोकुलनाथ

दारिद दरन भव-भय उधरन चारु

गोकुलनाथ

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    दारिद दरन भव-भय उधरन चारु,

    बारिज-बरन मन मधुप थितौत हीं।

    कामना-भरन फरे चारिहू फरन अंध,

    तिमिरहरन रवि रूप से हितौत हीं॥

    गोकुल कहत मोद महत लहत जन,

    जिताई चहतु है रहतु है तितौत हीं।

    औढर ढरन असरन के एरन महा,

    मंगलकरन गुरु-चरन चितौत हीं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : चेतचंद्रिका (पृष्ठ 2)
    • रचनाकार : गोकुलनाथ
    • प्रकाशन : भारतजीवन प्रेस, बनारस
    • संस्करण : 1894

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