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चंदन कौ खैरि चारु अँगराग घनसार

chandan kau khairi charu angarag ghansar

रसिक गोविंद

अन्य

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रसिक गोविंद

चंदन कौ खैरि चारु अँगराग घनसार

रसिक गोविंद

और अधिकरसिक गोविंद

    चंदन कौ खैरि चारु अंगराग घनसार,

    अंग-अंग सुमन सिगार मन मोहियै।

    मोतिनु मुकुट धरै हीरनु के हार गरे,

    पायजेब पाइनि जरायनि के जोहियै।

    चटक मटक पट पीति की फरहरानि,

    कहत गुविंद उपमान आन टोहियै।

    गोरिन के रंगरंगे आठौ जाम घनस्याम,

    तौ हू घनस्यामति तें घनेस्याम सोहियै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गोविंददास कृत दूषणोल्लास (पृष्ठ 203)
    • संपादक : बनीबहादुर सिंह
    • रचनाकार : रसिक गोविंद
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 1965

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