बरन-धरमु गयो, आश्रम निवासु तज्यो

baran dharamu gayo, ashram niwasu tajyo

तुलसीदास

तुलसीदास

बरन-धरमु गयो, आश्रम निवासु तज्यो

तुलसीदास

बरन-धरमु गयो, आश्रम निवासु तज्यो,

त्रासन चकित सो परावनो परो-सो है।

करमु उपासना कुबासनाँ बिनास्यो ग्यानु,

बचन-बिराग, बेष जगतु हरो-सो है॥

गोरख जगायो जोगु, भगाति भगायो लोगु,

निगम-नियोगतें सो केलि ही छरो-सो है।

कायँ-मन-बचन सुभायँ तुलसी है जाहि

रामनाम को भरोसो, ताहि को भरोसो है॥

इस कलियुग में वर्ण धर्म चला गया, ब्रह्मचर्यादि आश्रमों ने अपना स्थान छोड़ दिया। अधर्म से चकित होकर भग्गी-सी पड़ी हुई है। कर्म, उपासना और ज्ञान को कुवासना ने नष्ट कर दिया है। वचन मात्र के वैराग्य और वेष ने जगत को ठग-सा लिया है! गोरख ने योग क्या जगाया, लोगों को भक्ति से विमुख कर दिया और वेद की आज्ञा ने खेल ही में संसार को ठग-सा लिया है। तुलसी कहते हैं कि जिसे शरीर, मन और वचन से स्वाभाविक ही राम नाम का भरोसा है, उसी के संबंध में भरोसा होता है कि वह संसार से तर जाएगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 111)
  • रचनाकार : तुलसी
  • प्रकाशन : गीताप्रेस
  • संस्करण : 2017

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