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अरसोंहैं नैन करि, सरसौंहे मुसकाति

arsonhain nain kari, sarsaunhe muskati

कवींद्र (उदयनाथ)

अन्य

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कवींद्र (उदयनाथ)

अरसोंहैं नैन करि, सरसौंहे मुसकाति

कवींद्र (उदयनाथ)

और अधिककवींद्र (उदयनाथ)

    अरसोंहैं नैन करि, सरसौंहे मुसकाति,

    त्यौं-त्यौं अकुलाति ज्यों-ज्यों होत आली प्रात री।

    दाऊ वे परसपर पीवत अधर रस,

    चूमि-चूमि चटकीलौ मुख-जलजात री॥

    भनत कविंद भरि-भरि अंक ह्वै निसंक,

    नेह-भरे फिरि-फिरि दोऊ बतरात री।

    बिछुरन करत दुहूँ के गात ही तें दुवौ—

    लपटि-लपटि जात, नैंकु अघात री॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रीति शृंगार (पृष्ठ 145)
    • संपादक : डा० नगेंद्र
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन
    • संस्करण : 1963

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