अकथ अपार भवपंथ के बिलोकी

akath apar bhawpanth ke biloki

भूषण

भूषण

अकथ अपार भवपंथ के बिलोकी

भूषण

अकथ अपार भवपंथ के बिलोकी स्रम-हरन, करन बीजना से बरम्हाइयै।

यह लोक परलोक सफल करन कोकनद से चरन हियें आनिकै जुड़ाइयै।

अलिकुल-कलित कपोल ध्याय ललित अनंदरूप सरित मों भूषन अन्हाइयै।

पापतरु-भंजन बिघनगढ-गंजन भगत मन-रंजन द्विरदमुख गाइयै।

कवि कहता है कि मैं ब्रह्मरूप गणेशजी का ध्यान करता हूँ जो अपने कान रूपी पंखे के झलने से इस भयंकर अपार संसार रूपी मार्ग में चलने की थकान को दूर करते हैं। इस लोक और परलोक में सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाले गणेजी के लालकमल के समान चरणों को मैं अपने हृदय में धारण करता हूँ। भूषण कवि कहते हैं कि जिनके कपोल भौंरों के समूह से युक्त हैं (हाथी का गंड-स्थल मद बहने के कारण भौंरों से घिरा रहता है) जिनका ध्यान रखना सुंदर लगता है, ऐसे गणेशजी के आनंद की नदी में स्नान कीजिए। पाप रूपी पेड़ों को तोड़ने वाले, विघ्न रूपी क़िलों का नाश करने वाले और संसार का मनोरंजन (मन प्रसन्न) करने वाले गणेशजी के गुणों का सदैव गायन करना चाहिए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भूषण ग्रंथावली (पृष्ठ 128)
  • संपादक : आचार्य विश्वानाथ प्रकाशन मिश्र
  • रचनाकार : भूषण
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2017

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