ज़रूरी है बचाना

zaruri hai bachana

अंजुम शर्मा

अंजुम शर्मा

ज़रूरी है बचाना

अंजुम शर्मा

अभिसमयों, समझौतों और योजनाओं की

खानापूर्ति के दौर में

आवश्यक है हम बचाएँ उन चीज़ों को

जिनके लिए कोई सम्मेलन कोई हस्ताक्षर नहीं किए जाते

जितने ज़रूरी हैं बचाने

बाघ गौरैया गैंडा हंगुल

उतना ही ज़रूरी है हम बचाएँ

गर्मियों की छुट्टी वाला ‘मामा का घर’

आँखों में नींद की मिश्री घोलती माँओं की लोरियाँ

आँगन में दशहरी चूसते परिवार के ठहाके

और ख़रबूज़े के बीज छीलते नानियों के गोल

जितना ज़रूरी है बचाना

घग्घर यमुना हिंडन गोमती

उससे कम ज़रूरी नहीं है बचाना

कुएँ में गिरती बाल्टी की गहरी प्यास

खेतों में दौड़ते एक जोड़ी हीरा-मोती

दुआर पर बने गोल चौरस चबूतरे

और ढोलक की थाप पर सोहर गाती मोहल्ले की छतें

बचाने को तो बचाया जा सकता है

थाली में गुड़ का कोना भी

कमरे में बेंत टाँगने की खूँटी

पापड़ सुखाने का मोमजामा

और गुझिया सुलाने की परंपरा भी बचाई जा सकती है

लेकिन नहीं बचाएँगे हम

यह समय,

बचाने से अधिक बचाव के अभिनय का समय

कितना जीवंत अभिनय है

जिसमें बचाई जा रही है पृथ्वी,

आर्द्रभूमि, जंगल और जनजातियाँ

ख़ुद को बचाने के लिए दूसरों को मुसलसल मारना

मेरे, आपके या किसी भी समय का गीत नहीं होना चाहिए

संवेदनाओं के नाटक में ज़रूरी है हम बचाएँ

राई बराबर शर्म

इसलिए बचाइए, ज़रूर बचाइए

माजुली, अरावली, टोडा कढ़ाई

और मंजूषा चित्रकारी का अस्तित्व

मगर उतना ही ज़रूरी है बचाया जाए

पुरुषों में तर्जनी भर स्त्रीत्व

स्त्रियों में हथेली भर पुरुषत्व

बच्चों में मुट्ठी भर बचपन

और समाज में अंजुली भर साहचर्य।

स्रोत :
  • रचनाकार : अंजुम शर्मा
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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