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युद्ध

yudh

अनुवाद : सिद्धनाथ प्रसाद

लनचेनबा मीतै

अन्य

अन्य

और अधिकलनचेनबा मीतै

    पूर्वजन्म का प्रतिशोध चुकाने का संकल्प ले सूर्य

    निकला पूर्वी पहाड़ी की ओट से

    बाँधे काला ढाटा

    रण-बाना पहन

    ईशान से ही छोड़ता रक्तिम किरणें।

    करता खंड-खंड

    मुष्टिका में कसकर पकड़े रश्मि-खड्ग से

    परिपार्श्व सघन बसे

    पश्चिम के गुप्तचर तारों को

    किंतु

    पश्चिम की पर्वतमाला पर डटे

    अगणित सैनिक

    प्रक्षेपित कर रहे निरंतर

    पहने तड़ित् के चमचमाते शिरस्त्राण

    असंख्य काले बाण

    ओह!

    सूर्य, साही के समान

    गिरा है रक्त-रंजित

    कुरुक्षेत्र में

    निकट मृत्यु के क्षण

    बाणों पर लिटे भीष्म सा

    घनघोर बारिश के समान

    उसका रक्त

    बरसता है :

    शिकारी के जाल से निकल भागी

    रात भर लगातार दौड़ने से

    थककर चूर, अभी-अभी सोई

    गर्भिणी शङाई की देह पर

    बरसता है :

    माँ की गोद में सोए

    पक्षी-शावकों की आँखों में

    गिरता है :

    आँगन के खंभे पर

    गरदन लंबी कर सुस्ताते

    मरियल कुत्ते के ख़ाली पेट पर

    रक्त :

    जमता गया जहाँ-जहाँ गिरा

    गाढ़ा हो गया जमकर

    उखड़ता नहीं एकदम

    पास और दूर बजते

    सैनिकों के बिगुल का घोष

    रहा दौड़ता आग के तूफ़ान पर सवार

    जमे लाल रक्त की ओर

    शुरू होगा आज

    इस जगह एक नया युद्ध

    बिगुल की ऊँची कनफोड़ ध्वनि और

    जमे लाल रक्त के बीच।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 7)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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