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एक स्त्री की हत्या में शामिल हूँ

ek istri ki hattya mein shamil hoon

अदनान कफ़ील दरवेश

अन्य

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अदनान कफ़ील दरवेश

एक स्त्री की हत्या में शामिल हूँ

अदनान कफ़ील दरवेश

कुर्सियाँ उल्टी पड़ी हैं

तंदूर बुझ चुका है

आस-पास पानी गिरने से

ज़मीन काफ़ी हँचाड़ हो गई है

पत्तलों के ऊढे़ लगे हुए हैं

जगह-जगह डिसपोज़ेबल गिलास और दोने बिखरे हुए हैं

कुत्ते पत्तल चाटते-चाटते थक गए हैं

और अब खेल कर रहे हैं

तंबू और शामियाने अब उजाड़े जा रहे हैं

चमकदार परदे और रॉड उतारे जा रहे हैं

शाम को यहाँ शादी के भोज का एहतमाम था

शाम को यहाँ बत्तियों की जगर-मगर थी

आदमी-बूढ़े-जवान और बच्चियों की चहल-पहल थी

शाम को यहाँ एक नशा-सा था फ़ज़ा में

एक उत्साह, एक उत्सव का माहौल

अब कनिया की बिदाई हो रही है

माहौल में एक अजीब उजाड़-सा है

स्त्रियों का सामूहिक दिखावटी विलाप चल रहा है

कनिया रोकर चुप हो गई है

वधू पक्ष के लोग जहेज़ का सामान

और झपोलियाँ लदवा रहे हैं

सबके पास कोई कोई काम है

कन्या का पिता बाहर रसोइए की चौकी पर बैठा है

उसकी आँखों में तसल्ली और दुःख दोनों की रेखाएँ मौजूद हैं

कन्या को दूल्हे की सजी-धजी गाड़ी में अब बिठाया जा रहा है

वह फिर से बिलख रही है

सब उसे सांत्वना दिला रहे हैं

इस वक़्त कन्या के मन में क्या चल रहा है

ये तो शायद वह भी नहीं जानती

आज जिस पुरुष की वह स्त्री मान ली गई है

उसे बिल्कुल नहीं जानती

आज उस स्त्री के प्रथम सहवास का दिन है

आज ही एक पुरुष ने उसे बड़ी धूमधाम से ख़रीद लिया है

आज ही उसकी हत्या होगी

आज ही उसका एक नए घर में पुनर्जन्म होगा

नया सजा-धजा घर

नया शरीर

नए हाव-भाव

नई हँसी

नए विचार

नई संवेदना

इतनी नई कि कुछ दिनों में ही भूल जाएगी

अपना पिछला जन्म

उस प्रेमी का चेहरा भी

जिसे उसने अपने सीने के तहख़ाने में छुपा दिया था

पिता के घर की देहरी लाँघने के बाद ही

कुछ महीनों बाद वह शायद माँ बनेगी

वंश-वृद्धि करेगी

अपनी औलाद को चूमेगी और ढूँढ़ेगी उसमें अपने प्रेमी का खोया चेहरा

लेकिन ऐसा कभी-कभी ही होगा…

मैं ये वाक़या इसलिए कह रहा हूँ

क्योंकि इन सारी चीज़ों का मैं भी गवाह हूँ

लेकिन अब कुछ कहा नहीं जा रहा मुझसे

बस सिर झुकाए खड़ा हूँ

क्योंकि मैं भी उस स्त्री की हत्या में शामिल हूँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : अदनान कफ़ील दरवेश
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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