वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग

wo ichha hai magar ichha se kuch aur alag

पंकज सिंह

पंकज सिंह

वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग

पंकज सिंह

वइ इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग

इच्छा है मगर इच्छा से ज़्यादा

और आपत्तिजनक मगर ख़ून में फैलती

रोशनी के धागों-सी आत्मा में जड़ें फेंकती

वह इच्छा है

अलुमुनियम के फूटे कटोरों का कोई सपना ज्यों

उजले भात का

वह इच्छा है जिसे लिख रहे हैं

खेत मज़दूर छापामार और कवि एक साथ

वह इच्छा है हमारी

जो सुबह के राग में बज रही है

स्रोत :
  • रचनाकार : पंकज सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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