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विस्थापन

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वंदना शुक्ल

अन्य

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वंदना शुक्ल

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वंदना शुक्ल

और अधिकवंदना शुक्ल

    पिता के स्थानांतरण की वजह से एक शहर से

    दूसरे शहर जाना होता रहता था

    किराए के एक मकान को छोड़कर

    सब सामान एक छोटी लॉरी में डाल

    किराए के दूसरे मकान की ओर जाते थे

    पहला मकान, जो शुरू में मकान रहा आता

    धीरे-धीरे घर-सा होने लगता था

    लेकिन पूरा घर ‘होने’ में अभी कुछ कसर बाक़ी रहती थी

    कि मकान बदल लिया जाता

    कई रातों करवट-करवट याद आती रहती

    पुराने घर की एक-एक दीवार,

    उस पर टँगा कैलेंडर

    फ़्रेम में जड़ी पारिवारिक तस्वीरें, सीनरी

    दीवारों, फ़र्श के दाग़-धब्बे, उसकी छतें, छत पर उड़ाई जाती पतंगें

    पड़ोसी, परचून और दवाइयों की दुकानें

    बाथरूम का रिसता नल, और जाने क्या-क्या

    मकान अब भी बदले जाते हैं पर

    आश्चर्य है कि अब मकान बदलते हुए

    अपनी पुरानी रिहाइश को

    एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखती

    अब धीरे-धीरे रहना सीख गई हूँ इस सभ्य

    आधुनिक दुनिया में!

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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