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विस्फोट

wisphot

सती कुमार

अन्य

अन्य

सती कुमार

विस्फोट

सती कुमार

और अधिकसती कुमार

    यदि मैं गिर पड़ा तो

    मेरे अस्तित्व के विस्फोट का

    धरती पर

    कोई धब्बा नहीं होगा

    मिट्टी का एक कण भी

    झुलसकर

    धुआँ नहीं बनेगा

    आज

    अथवा रही सदियों में

    कहीं नहीं मिलेगा

    ख़ून के क़तरों का

    काला निशान

    प्रयोगशाला से निकलकर

    शोधकर्ता

    वनस्पतियाँ टटोलेंगे

    धो-धोकर देखेंगे

    घास की पत्तियों को

    निश्चित करने के लिए

    कि कहाँ-कहाँ स्पर्श करता

    गुज़रा था मेरा श्वास

    अस्तरों की

    विष बुझी तीखी धार पर

    फिराएँगे जीभ

    कि कहीं वहाँ कसैलापन बाक़ी हो

    मेरे अस्तित्व के

    अंतिम क्षणों का

    गिरते समय

    किसी का सहारा लेना चाहा था?

    ख़ामोश होगी

    सृष्टि सारी

    यहाँ तक

    कि झरनों का

    गुँथा विलाप भी

    फँस चुकी होगी

    झील की यह मछली

    जिसे किनारे बैठकर

    खिलाता था में

    जंगली हिरण का

    भुना माँस

    बर्फ़ बन चुकी होगी

    वह तेज़ नदी

    जिसमें

    चेहरा देखने के बाद

    शुरू होता था

    मेरा हर पल, प्रतिदिन

    कोई नहीं बोलेगा

    कुछ कहना चाहेगा

    किसी के गले में फँसा

    मछली के पंख का

    एक टूटा हुआ काँटा

    लेकिन उसे

    निकाल फेंकने की

    इतनी जल्दी होगी कि...

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 221)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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