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जाड़े की सुबह

jaDe ki subah

अलेक्सांद्र पूश्किन

अलेक्सांद्र पूश्किन

जाड़े की सुबह

अलेक्सांद्र पूश्किन

अद्भुत प्रात: बिछा भी कुहरा, छाया भी रवि-रश्मि वितान।

पर जीवन के सुखमय साथी, अब भी तुम निद्रा लयमान।

यह वह बेला है सुंदरता जब लेती है अँगड़ाई,

खोलो नयन, उघारो पलकें, जो निद्रा से गरुआई।

युगल नयन तारक चमकाओ उत्तर से, मन की रानी।

उत्तर के नभ में करने को अरुणोदय की अगवानी।

रात भयंकर आधी ने था अंबर में डेरा डाला,

और पड़ा था सारी पथ्वी के ऊपर गहरा पाला,

मुक्त था धूसर बादल से नभ-मंडल का कोई भाग,

चंद्र दिखाई पड़ता था जैसे कोई पीला दाग़।

ले गंभीर उदासी बैठी थी तुम सिर को नीचा कर,

लेकिन अब तो उठकर देखो अपनी खिड़की के बाहर।

निर्मल नील गगन के नीचे फैली है हिम की चादर,

सूरज की चटकीली किरणें पड़ती उसपर आकर,

धरती दिखलाई पड़ती है पहने मणिमय पाटबर।

छिपे धवल-निर्मल परदों के पीछे हैं जंगल काले,

पेड़ सनोबर के लगते हैं कुहरे में भी हरियाले,

हिम की परतों के नीचे हैं बहते चमकीले नाले।

हर कमरे के भीतर फैला पीठ सुनहला उजियाला,

बुझी अँगीठी के अंदर से उठती, देखो, फिर ज्वाला,

जल 'चट-चट' कर, हर्ष प्रकट कर, ताप सुहाना फैलाती,

कितना सुंदर, बैठ यहाँ पर देखे सपनों की पाती,

किंतु क्या इससे यह अच्छा होगा मँगवाएँ जोड़ी,

और जुताएँ उसमें बढ़िया बादामी रंग की घोड़ी।

प्रातकाल की उजली-चिकनी बिछी बरफ़ पर से होकर,

आओ जीवन के प्रिय साथी, दूर चलें हम तुम सत्वर,

चंचल घोड़ों को बढ़ने दें सरपट, कर दें ढीली रास,

चलो चलें उन सूने खेतों में जिनमें फैली है घास,

जंगल में, जिनमें गरमी में भी किसी ने पग धारे,

और नदी-तट पर, जो मुझको है सब जगहों से प्यारे।

स्रोत :
  • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 55)
  • रचनाकार : अलेक्सांद्र पूश्किन
  • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
  • संस्करण : 1964
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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