पत्नी के लिए

patni ke liye

विनोद पदरज

विनोद पदरज

पत्नी के लिए

विनोद पदरज

चालीस बरस पहले आई थीं तुम मेरे पास

चालीस बरस पहले

स्त्री होने के कारण ही

यह लगभग मूलोच्छेदन था एक कम वय वल्लरी का

जो सम्मुख अवलंब देख

बेतरह लिपट गई

फिर हमने साथ-साथ जिया एक काल-खंड

झेलीं लूएँ प्रचंड

अंधड़ उपलाधात तड़ित प्रहार

पूस में पाले की मार

तीक्ष्ण कुठारों के वार पर वार पर वार

पर नहीं मानी हार

किया जीवन का सत्कार

जब-जब बारिशें आईं धीमी झूमतीं

हम भीगे बाहर भीतर

और जब-जब प्रगट हुआ ऋतुराज

कुसुमशर चाप धर

जीर्ण पत्र सब झरे सिहर कर

तीतियाँ फूटीं

हम पुनर्नवा हुए

खिले-खिलखिलाए

अपनी ही गंध में डूबे उतराए

अब जब गत हुआ यौवन का उन्माद

चालीस बरस बाद

मैं पहली बार ज़ुबान से कहता हूँ

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ

पर यह कौन है

जो रह-रह हमारा द्वार खटकाता है

शायद मृत्यु

प्रिय तुम ठहरो

मैं देखता हूँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : विनोद पदरज
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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