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अभी हूँ

abhi hoon

अनाम कवि

अन्य

अन्य

अनाम कवि

अभी हूँ

अनाम कवि

और अधिकअनाम कवि

    अभी हूँ, तिरस्कृत, वंचित, अर्थहीन

    अभी हूँ, अरण्य में झूमता बाँस, स्वर-विहीन

    अभी हूँ, ठूँठा कुबड़ा पलाश, पत्रहीन

    जागूँगा, पहुँचूँगा कल

    शिखरों के निकट

    भरूँगा स्वर दुखित अरण्य के

    बिखेरूँगा रंग-प्रखर, दमित, सुप्त तपते भूखंड के

    अभी हूँ राग अनसुना

    अभी हूँ ज्ञान अनगुना

    अभी हूँ नियति हाथों का झुनझुना

    कल, पिघलेंगे पहाड़ सुनकर उनके करुण राग

    कल होंगे निर्वसन, छद्म ज्ञान के जगमग खंड

    कल होंगे बौने धराशायी, आज जो हैं मंचासीन

    बनूँगा कल, भूडोल का प्रबल कंपन

    भूगर्भ ज्वाल का ऊर्ध्वपुंज

    अभी हूँ घुमड़ते ज्वार की करवट बेचैन

    कल फेटूँगा, काल के कुटिल छद्म

    कल होंगे, रजतमहल और स्वर्णशिखर सब भूमिसात

    कल होगी अलंघ्य ऊँचाइयाँ, जलमग्न

    रचेगी धरती, कल फिर नए शिखर

    कल होंगे, उर्वर मरुक्षेत्र

    कल होगा ही प्रस्थान खोज में उसकी

    जिसे हमेशा झुठलाया जाता रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 34)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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