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वंदेमातरम

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बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

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और अधिकबदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'

    जय जय भारत भूमि भवानी।

    जाकी सुयश पताका जग के दसहूँ दिसि फहरानी॥

    सब सुख सामग्री पूरित ऋतु सकल समान सोहानी॥

    जाकी श्री शोभा लखि अलका अमरावती खिसानी।

    धर्म सूर जित उयो; नीति जहँ गई प्रथम पहिचानी॥

    सकल कला गुन सहित सभ्यता जहँ सों सबहि सुझानी।

    भये असंख्य जहाँ योगी तापस ऋषिवर मुनि ज्ञानी॥

    बिबुध बिप्र विज्ञान सकल बिद्या जिन ते जग जानी।

    जग बिजयी नृप रहे कबहुँ जहँ न्याय निरत गुण खानी॥

    जिन प्रताप सुर असुरन हूँ की हिम्मत बिनसि बिलानी।

    कालहु सम अरि तृन समुझत जहँ के छत्री अभिमानी॥

    बीर बधू बुध जननि रहीं लाखनि जित सखी सयानी।

    कोटि कोटि जहँ कोटि पती रत बनिज बनिक धन दानी॥

    सेवत शिल्प यथोचित सेवा सूद समृद्धि बढ़ानी।

    जाको अन्न खाय ऐंड़ति जग जाति अनेक अघानी॥

    जाकी संपति लुटत हजारन बरसन हूँ खोटानी।

    सहत सहस बरिसन दुख नित नव जो ग्लानि उर आनी॥

    संपति सौरभ सोभा सन जग नृप गन मनहुँ लुभानी।

    प्रनमत तीस कोटि जन जा कहँ अजहुँ जोरि जुग पानी॥

    जिन मैं झलक एकता की लखि जग मति सहमि सकानी।

    ईश कृपा लहि बहुरि प्रेमघन बनहु सोई छबि छानी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 44)
    • संपादक : नंद किशोर नवल
    • रचनाकार : बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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