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वही, जो नहीं है कहीं

wahi, jo nahin hai kahin

अनुराधा सिंह

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अनुराधा सिंह

वही, जो नहीं है कहीं

अनुराधा सिंह

और अधिकअनुराधा सिंह

    साहस करो कि स्वीकार सको

    मौन को

    उसके मतभेद के साथ

    यह विरोध है तुम्हारी अधिक भाषा का

    स्फीति की सविनय अवज्ञा

    क्योंकि अश्लील बात है

    हर नैसर्गिक भूख को

    शब्दों में कह देना

    जो मन मार कर उठ जाता है

    उत्सव से

    वह जाता नहीं कहीं

    बना रहता है

    परछाइयों और अंतरालों में

    प्रियतम की अनुपस्थिति

    से बड़ा कोलाहल नहीं दूसरा

    जो नहीं है

    वही डेरा डाले है चप्पे-चप्पे में

    अब इस पूरी दुनिया में

    बस एक आदमी फेरे है पीठ मेरी ओर

    इसका अनुवाद मैं

    असह्य प्रेम की अभिव्यक्ति में करना चाहूँगी

    एक क्षणांश को वह मुड़ता

    देखता है मेरी सीध में

    उसी क्षण उसकी आत्मा

    दंडवत होती है प्रेम की अडिग सत्ता के सम्मुख

    हमारे बीच सात समुद्र हैं

    सात महाद्वीप

    असंख्य ज्वालामुखी

    मेरे ध्रुवांत का नाम ऊहापोह

    उसका उलाहना

    यूँ ही कट जाता है एक जीवन

    पीठ फेरने और पलट देखने के बीच

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराधा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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