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अशाश्वत

ashashwat

मंगलेश डबराल

अन्य

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मंगलेश डबराल

अशाश्वत

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    सर्दी के दिनों में जो प्रेम शुरू हुआ

    वह बहुत सारे कपड़े पहने हुए था

    उसे बार-बार बर्फ़ में रास्ता बनाना पड़ता था

    और आग उसे अपनी ओर खींचती रहती थी

    जब बर्फ़ पिघलना शुरू हुई तो वह पानी की तरह

    हल्की चमक लिए हुए कुछ दूर तक बहता हुआ दिखा

    फिर अप्रैल के महीने में जऱा-सी एक छुवन

    जिसके नतीजे में होंठ पैदा होते रहे

    बरसात के मौसम में वह तरबतर होना चाहता था

    बारिशें बहुत कम हो चली थीं और पृथ्वी उबल रही थी

    तब भी वह इसरार करता चलो भीगा जाए

    यह और बात है कि अक्सर उसे ज़ुकाम जकड़ लेता

    अक्टूबर की हवा में जैसा कि होता है

    वह किसी टहनी की तरह नर्म और नाज़ुक हो गया

    जिसे कोई तोड़ना चाहता तो यह बहुत आसान था

    मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि यह प्रेम है

    पतझड़ के आते ही वह इस तरह दिखेगा

    जैसे किसी पेड़ से गिरा हुआ पीला पत्ता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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