उसके निशाने पर

uske nishane par

लक्ष्मण गुप्त

लक्ष्मण गुप्त

उसके निशाने पर

लक्ष्मण गुप्त

वो जो हाथ में लिए पत्थर

दुनिया को ललकार रहा है

उसकी शक्ल

मुझसे मिलती है

मैं कहूँ कि आपसे भी मिलती है

हर उस एक से मिलती है

जो उसके निशाने पर है

थोड़ा ठहरकर सोचिए

कि आप ही की शक्ल का आदमी

आप ही के ख़िलाफ़ क्यों है

आप जो सभी चीज़ों को

एक ही साँचे में देखने के अभ्यस्त हो गए हैं

एक ही पटरी पर दौड़ते जा रहे हैं

एक ही किताब सदियों से पढ़ रहे हैं

एक ही तरह का जीवन जी रहे हैं

आप जो कि जीते हुए

हमेशा यही चाहते हैं

कि सभी को इसी तरह जीना चाहिए

हर हिसाब में

आपकी तरह होना चाहिए

इक आना कम, इक आना ज़्यादा

वो जो पत्थर लिए

आपके ख़िलाफ़ है

उसके पैरों की माप

आपकी दुनिया से ज़्यादा बड़ी है

उसके दिमाग़ का वज़न

बहुत-बहुत अधिक है

आपके-हमारे दिमाग़ से

उसका हृदय

सभी दीवारों को ढहाकर

अथाह में डूब गया है

उसने दुनिया की किताबों के साथ ही

दुनियावी किताब का ठीक-ठीक पाठ किया है

वो जान गया है

जीने का असल तरीक़ा

प्यार के सही मायने

उसे नफ़रत हो रही है

आपकी-हमारी बँटी हुई शक्लों से

जबकि वो जान गया है

कि मनुष्यता का रंग

मिट्टी, पानी, हवा के रंग से

तनिक भी जुदा नहीं

वो जान गया है

कि बच्चे की हँसी से

ज़्यादा पवित्र कुछ भी नहीं

आप ध्यान से देखिए

उसके निशाने पर

तो बच्चे हैं

ही प्यार में नहाए हुए लोग

और खिले हुए फूल तो

बिल्कुल भी नहीं हैं

उसके निशाने पर

उसने अपनी जेबों में

रखे हैं तरह-तरह के फल

जो उसे ग़ुस्सैल के साथ ही

बेइंतिहा प्रेमिल बना रहा

आपकी-हमारी भाषा से

विलग है उसकी भाषा

उसने किसी तराज़ू में तौलकर

कभी शब्दों को नहीं रखा है

आपके-हमारे समक्ष

वह बोलता अधिक है

क्योंकि उसे मालूम है

आपकी-हमारी सदी ख़ामोश है बहुत

एकदम चुप्पा

हद दर्जे का घुन्ना

यह काम सलीक़े से

सिर्फ़ और सिर्फ़ वही कर सकता है

वो जानता है

उसके लिए आपके पास वही नाम है

जिसे आप इतिहास से

हमेशा उधार लेते हैं...

स्रोत :
  • रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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