उनके सोने का वक़्त कभी एक नहीं था

unke sone ka waqt kabhi ek nahin tha

नाज़िश अंसारी

नाज़िश अंसारी

उनके सोने का वक़्त कभी एक नहीं था

नाज़िश अंसारी

शौहर तिजारती

सूद-ब्याज-तगादा-उधारी

हिसाब के तमाम सबक़ की तरह

याद है उसे बीवी के जिस्म की सब गलियाँ,

सड़कें और फ़्लाईओवर भी

किसी रूटीन रास्ते पर पाँव बनकर

रात चलती हैं उँगलियाँ

सहलाती हथेलियाँ

बालियों से आज़ाद है उसके कान की लौ

कलाइयाँ चूड़ियों से

पाज़ेब से टख़ने

रियाज़ से ज़ेहन

बेऐब और पाक है वह इतनी कि आप 'कन्या पूज' लें

पूछा जाना चाहिए इस वक़्त

कि हफ़्ते की सुबह उसकी आँखों के पपोटे सूजे क्यूँ थे

हेडफ़ोन में सनीचर की रात कौन-सा गाना

री-पीट मोड में लगा कर रोती रही देर तक

मायके की याद में पोस्ट लिखती है

जाती क्यूँ नहीं

काँधे से बालिश्त भर नीचे बना टप्पा चोट है या लच्छन

उस वक़्त मिल सकता है जवाब

कॉलेज अलबम की हर फ़ोटो में पहनी अँगूठी

अब क्यूँ नहीं पहनती

कहाँ है उसकी पॉपकॉर्न हँसी

आँखों के नीचे स्याह धब्बे कब हुए

और इतने गहरे कब हुए

बीवी चाहती है

जब आज़ाद किए जाएँ बाल जूड़े से

लॉक पैटर्न पर ड्रा करके पासवर्ड

वह खोले दिल का ऐप

सब सवालों के जवाब दे

कुछ नहीं पूछा गया उससे

लेकिन वह चाहती है पूछना

खुरचे हुए सीने

बाँह पर बनी नील देखकर

आह-ऊह-आउच के बजाय

वह खीझ कर

बल्कि चीख़ कर चाहती है पूछना

किस ख़ला पर रहती हैं चुटकुले वाली औरतें

जो चलाती हैं पतियों पर बेलन

जाँघों और छातियों से ज़रा ऊपर

जिस्म पर ही क़ाबिज़ है

जोड़ी भर आँख भी

उसकी अहमियत क्यूँ नहीं है

जवाब कौन दे

वक़्त पर दौड़ ख़त्म कर फ़ारिग़ हुआ शौहर

हाँफ़ते हुए बेसुध सो चुका है

वह अब भी जग रही है

उनके सोने का वक़्त एक होना चाहिए था!

स्रोत :
  • रचनाकार : नाज़िश अंसारी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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