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फ़िलहाल मेरे पास

filaha mere pas

विमलेश त्रिपाठी

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विमलेश त्रिपाठी

फ़िलहाल मेरे पास

विमलेश त्रिपाठी

और अधिकविमलेश त्रिपाठी

    एक दुःख बिछाता हूँ

    ओढ़ता हूँ एक

    एक है जो साथ-साथ दफ़्तर तक जाता है

    एक शाम को साथ लौटता है घर

    एक दुःख अपने बच्चे की हथेली पर लेमचूस की तरह रखता हूँ

    एक को रखता हूँ

    पत्नी के झुराए-पथराए होंठ पर

    एक दुःख रोटी

    दूसरा तरकारी

    एक बूढ़े पिता

    एक बीमार माँ

    एक बेरोज़गार भाई

    और साहिबान यह पेट भी तो एक दुःख ही है

    आजकल देश और सरकार और प्रजातंत्र और कविता और बुद्धिजीवी और क्रांति और आंदोलन और घिनौनी पराजय इत्यादि

    यह सब एक-एक दुःख

    कविता में रात भर दुःख की नींद की अभ्यर्थना करता हूँ

    मैं अनाम और गुमनाम कवि इस धरती का

    फ़िलहाल मेरे पास दुःख के सिवा और कोई ईश्वर नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विमलेश त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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