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उज्ज्वल भविष्य

ujjwal bhawishya

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

रमाकांत रथ

अन्य

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रमाकांत रथ

उज्ज्वल भविष्य

रमाकांत रथ

और अधिकरमाकांत रथ

    क्या पहनूँगा मैं अपने अंतिम दिन?

    यदि हाफ पैंट पहनूँगा तो

    शायद दिखूँगा किसी खिलाड़ी-सा

    लोग देखेंगे कि अंतिम क्षण तक मैं

    बड़ा बेपरवाह था,

    मन में स्फूर्ति थी,

    भय था पछतावा

    खेल में था जीवन मेरा

    विश्राम का समय।

    किंतु यदि धोती पहनूँ तो शायद

    लोग सोचेंगे कि अंतिम साँस तक मैं

    ख़ुशमिजाज था, मृत्यु थी एक रविवार।

    बाहर सिनेमा के गाने और अंदर कमरे में

    चाय और सिगरेट तथा गपशप दुनिया भर की।

    यदि मैं सूट पहनूँ अपने अंतिम दिन

    दुनिया समझेगी मुझे बेख़ौफ़ शौक़ीन साहब,

    दूसरे कई कामों की तरह है मृत्यु एक काम

    इसलिए कोई झिझक

    या व्यर्थ की व्यस्तता नहीं।

    ही कोई कच्ची उदासी।

    मेरी वेशभूषा हो चाहे जैसी

    एक और मृत्यु होगी मेरे मरने के दिन।

    नंगे बदन फिरकी पकड़ने, बेर तोड़ने में

    पूरी सुबह बिताने वाले बालक का

    उस दिन होगा देहांत।

    मेरे जीते-जी वह ज़िंदा था।

    आधी रात में चुपचाप

    लुक-छिपकर चला जाता था

    धूप में, हरियाली में

    पत्तों के बीच छिपे पक्षियों के कलरव में।

    मरेगा वह उसी तरह नंगे बदन।

    लौटने की राह बंद है समयांतर में

    श्मशान से बादलों तक पसरे परिवर्तन में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तैयार रहो मेरी आत्मा (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : रमाकांत रथ
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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