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तुमसे साक्षात्कार के पहले ही

tumse sakshatkar ke pahle hi

रेनर मरिया रिल्के

अन्य

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रेनर मरिया रिल्के

तुमसे साक्षात्कार के पहले ही

रेनर मरिया रिल्के

और अधिकरेनर मरिया रिल्के

    (संभवतः बेनवेनुटा के लिए)

    अनमिली अनजानी

    अनुपलब्धि से शुरू होने वाली

    मेरी प्यार,

    यह भी तो नहीं ज्ञात कि कौन से स्वर तुम्हें प्रिय लगते हैं?

    मात्र भविष्य की लहरों की उठान में

    मैं तुम्हारा आकार पहचानने का यत्न करता रहा हूँ।

    तमाम बड़े से बड़े

    मुझमें बसे हुए स्मृति-बिंब, सुदूर महसूस किए हुए दृश्य,

    मीनारें, नगर, सेतु और रास्तों के

    अप्रत्याशित घुमाव और देवताओं की बस्ती

    वाले रहस्यमय देशों का इंद्रजाल :

    मुझमें धीरे-धीरे सम्पुंजित होता रहा है

    मात्र तुम्हें सार्थक करने के लिए—

    तुम जो पकड़ाई में नहीं आतीं।

    तुम फूलवन हो

    जिन्हें कितनी प्रदीप्त आशाओं से मैंने निहारा है; कहीं

    किसी उद्यान-गृह की

    खिड़की खुली कि तुम मानो साकार

    विचार-मग्न मुझसे मिलने निकल आईं।

    सड़कें—मैंने पाया—

    मानो तुम अभी-अभी उन पर चल कर गई हो

    और अक्सर बिसाती की दुकानों पर

    दर्पण दीखे जो अब भी तुम्हारी छाया से

    आच्छादित थे और मेरी छाया लौटाते हुए

    मानो चौंक गए—कौन जानता है कि क्या वह

    वही पक्षी तो नहीं था जिसका गीत

    कल शाम अलग-अलग

    हममें से गूँज गया

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 215)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : रेनर मरिया रिल्के
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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