तुम्हारे बग़ैर

tumhare baghair

अनुवाद : चमनलाल

पाश

पाश

तुम्हारे बग़ैर

पाश

तुम्हारे बग़ैर मैं बहुत खचाखच रहता हूँ

यह दुनिया सारी धक्कमपेल सहित

बे-घर पाश की दहलीज़ें लाँघकर आती-जाती है

तुम्हारे बग़ैर मैं पूरे का पूरा तूफ़ान होता हूँ

ज्वारभाटा और भूकंप होता हूँ

तुम्हारे बग़ैर

मुझे रोज़ मिलने आते हैं आइंस्टाइन और लेनिन

मेरे साथ बहुत बातें करते हैं

जिनमें तुम्हारा बिल्कुल ही ज़िक्र नहीं होता

मसलन : समय एक ऐसा परिंदा है

जो गाँव और तहसील के बीच उड़ता रहता है

और कभी नहीं थकता

सितारे जुल्फ़ों में गूँथे जाते

या जुल्फ़ें सितारों में—एक ही बात है

मसलन : आदमी का एक और नाम मेन्शेविक है

और आदमी की असलियत हर साँस में बीच को खोजना है

लेकिन हाय-हाय...

बीच का रास्ता कहीं नहीं होता

वैसे इन सारी बातों से तुम्हारा ज़िक्र ग़ायब रहता है

तुम्हारे बग़ैर

मेरे पर्स में हमेशा ही हिटलर का चित्र परेड करता है

उस चित्र की पृष्ठभूमि में

अपने गाँव की पूरे वीराने और बंजर की पटवार होती है

जिसमें मेरे द्वारा निक्की के ब्याह में गिरवी रखी ज़मीन के सिवा

बची ज़मीन भी सिर्फ़ जर्मनों के लिए ही होती है

तुम्हारे बग़ैर, मैं सिद्धार्थ नहीं—बुद्ध होता हूँ

और अपना राहुल

जिसे कभी जन्म नहीं देना

कपिलवस्तु का उत्तराधिकारी नहीं

एक भिक्षु होता है

तुम्हारे बग़ैर मेरे घर का फ़र्श—सेज नहीं

ईंटों का एक समाज होता है

तुम्हारे बग़ैर सरपंच और उसके गुर्गे

हमारी गुप्त डाक के भेदिए नहीं

श्रीमान बी.डी.ओ. के कर्मचारी होते हैं

तुम्हारे बग़ैर अवतार सिंह संधू महज़ पाश

और पाश के सिवाय कुछ नहीं होता

तुम्हारे बग़ैर धरती का गुरुत्व

भुगत रही दुनिया की तक़दीर

या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुज़रते अ-हादसे

मेरा भविष्य होते हैं

लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है

तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं।

स्रोत :
  • पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 40)
  • संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
  • रचनाकार : पाश
  • प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
  • संस्करण : 2004

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