तुम आओगे न सुरेस?

tum aoge na sures?

शचींद्र आर्य

शचींद्र आर्य

तुम आओगे न सुरेस?

शचींद्र आर्य

लगा, तुम

अभी तो सामने थे, बोल रहे थे।

बोलते-बोलते कुछ सोच रहे थे

और किसी सपने में कुछ देख रहे थे।

दृश्य अभी आगे बढ़ ही रहा था,

हम सोच ही रहे थे, तुम अब क्या कहोगे,

तभी अचानक

चुप होकर आँखों के सामने से चलकर तुम ग़ायब हो गए।

कहीं तुम पर्दे के पीछे जाकर कहीं छिप तो नहीं गए,

देख रहे होगे चुपके से तुम, एक आँख बंदकर कनअँखियों से?

क्या तुम उस नायक की तरह तो नेपथ्य से निकलकर

वापस नहीं जाओगे,

जिसका सब बेसबरी से इंतज़ार करते हैं?

यह कैसा त्रासद दृश्य है,

किस तरह तुम मर्मांतक अभिनय कर रहे हो?

कहाँ से सीखा तुमने यह सब हमें बिन बताए?

सब तुम्हें लेटा हुआ देख रहे हैं।

तुम ज़मीन पर ऐसे लेटे हो

जैसे अभी आँख खोलकर बुदबुदाओगे

सबसे पूछोगे—यहाँ कैसे गया?

सच,

उस तस्वीर में तुम अभी भी ऐसे लेटे हो जैसे सो रहे हो।

लगता है, अभी उठोगे और कहोगे— फ़ोटो दोबारा खींचो।

उसी में आँख मलते हुए बोलोगे—

क्यों यह भीड़ लगा रखी है। सोने भी नहीं देते सब।

कभी सोचता हूँ, दिल्ली ही नहीं लौटता।

बनवा लेता अपना करधन। ले लेता एक और कजरौटा।

एक पायल और एक मुन्दरी भी।

सब वहीं छूट गया सुरेस। तुम भी वहीं छूट गए।

पतझड़ का ही मौसम था, होली का जैसे

जैसे कोई हरा पत्ता, पीला पड़कर

हवा के हलके से झोंके का साथ पाकर

उसके संग उड़ जाता है, तुम भी उड़ गए।

सुरेस तुम नहीं जानते,

तुम पिछले साल का मार्च बन गए।

पकड़ में ही नहीं आए किसी के।

सोचता हूँ,

अब क्यों जाऊँगा गुधरिया बाबा?

कौन तुम्हारी अब जगह मिलेगा वहाँ?

किसको सुपुर्द कर गए हो अपना नाम, अपनी शक्ल?

अब कौन हमारा चाचा कहलाएगा?

किसे हम सुरेस चाचा कहेंगे? किसे हम मिलकर छेड़ेंगे?

तुम चाचा होकर भी छोटे भाई थे।

तुम्हारी छाया में हम भी बड़े हो रहे थे। तुम क्यों चले गए सुरेस?

कम से कम तुम्हें

इस सवाल के जवाब की ख़ातिर एक बार ज़रूर लौटना चाहिए।

क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता सुरेस?

एक बार तो आओ। मिल लो।

बता दो, अब नहीं आओगे दोबारा।

अब कभी नहीं लौट सकोगे।

पर एक बार जाओ। सबको बता दो।

बिलकुल वहीं से जागना सुरेस,

होली के एक दिन बाद से।

तुम्हें तो याद होगा, सुबह है। तुम तखत पर बैठे हो।

नाश्ते में डबल रोटी खा चुके हो। चाय पी रहे हो।

उसी तखत से गिरकर जहाँ तुम सो गए थे और उठे नहीं थे।

बिलकुल वहीं से जागना।

एक दिन आगे, एक दिन पीछे।

तुम आओगे सुरेस?

कहो, मैं आऊँगा।

बस एक बार कह दो सुरेस। बस एक बार।

स्रोत :
  • रचनाकार : शचींद्र आर्य
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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