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तुम

tum

अनुजीत इक़बाल

अन्य

अन्य

और अधिकअनुजीत इक़बाल

    तुम्हारे कथनों को मैं

    किसी ब्रह्म सिद्धांत की तरह

    अंगीकार करने लगी हूँ

    तुम्हारी उपस्थिति मेरे जीवन में

    किसी गंधर्व द्वारा निर्देशित

    पार्श्व संगीत से कम नहीं

    जबकि मैं नहीं जानती कि

    तुम्हें इसका भान है भी या नहीं

    जब भी तुम शब्दों को आवरण-बद्ध करके

    विभिन्न चेष्टाओं द्वारा अपना प्रेम

    मेरे लिए प्रदर्शित करते हो तो

    मेरा मन होता है कि

    मेरी छलनी आत्मा और जर्जर देह पर

    तुम स्वयं अपने हाथों से

    औषधि का लेपन कर दो

    ताकि जन्म जन्मांतर की पीड़ा शांत हो

    आकाश में सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन तक

    आता जाता रहता है

    और यहाँ पृथ्वी पर मैं हूँ

    जिसके प्रारब्ध में तुम्हारा आना

    और इस दारुण हिज्र का जाना नहीं लिखा

    यद्यपि तुम दूर ही रहोगे सदैव

    लेकिन हमारा मिलना अवश्यंभावी है

    एक निश्चित समय पर…

    जब मैं इस देह के पाश से मुक्त हो जाऊँगी

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुजीत इक़बाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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