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आज तो देखो

aaj to dekho

अनुवाद : सतीश ‘विमल’

दीनानाथ ‘नादिम’

अन्य

अन्य

दीनानाथ ‘नादिम’

आज तो देखो

दीनानाथ ‘नादिम’

और अधिकदीनानाथ ‘नादिम’

    इधर तो देखो

    चारों तरफ़ देखो

    ऐसा आभास होता है ना

    कि धुंध अभी बाक़ी है

    बचा है कहीं धूप का कोई छींटा अगर

    तो है उसके पीछे पड़ा धुआँ

    खिले हैं अकाल कुसुम कितने

    कितनी ख़ुशबू उड़ रही है

    बहुत से रंग हैं मगर लजीले

    बहुत आर्द्र है पवन वासंती

    विचार रंगीन बहुत उभरते

    परंतु धुंध के दलों के दल (षड्यंत्र) रच रहे हैं क्या

    सुशीलता पर प्रतिबंध क्यों है?

    सच के द्वार पर क्यों पड़े हैं ताले?

    अभी भी तो लोग खाते हैं सीना ताने

    'गांधी औ' नेहरू की क़समें

    सत्य फिर क्यों चढ़ाया जा रहा है सूली पर

    पवित्रता, मन की सादगी का

    क्यों नहीं है कोई मूल्य कहीं भी?

    (मूल शीर्षक: दियिव नज़र अज़)

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : दीनानाथ ‘नादिम’
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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