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फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

phir byarth mila hi kyon jiwan

शिवमंगल सिंह 'सुमन'

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शिवमंगल सिंह 'सुमन'

फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

शिवमंगल सिंह 'सुमन'

और अधिकशिवमंगल सिंह 'सुमन'

    पलकों के पलने पर प्रेयसि

    यदि क्षण भर तुम्हें झुला सका

    विश्रांत तुम्हारी गोदी में

    अपना सुख-दुःख भुला सका

    क्यों तुममें इतना आकर्षण, क्यों कनक वलय की खनन-खनन

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

    आहों से शोले, नयनों से

    निकली यदि चिनगारी प्रखर

    अधरों में भर असीम तृष्णा

    यदि पी सका अहरह सागर

    लेकर इतनी वेदना व्यथा, किस योग मिला फिर यह यौवन

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

    अपने क्रंदन को निर्बल के

    रोदन में अगर मिला सका

    हाहाकारी चीत्कारों से

    प्रस्तर उर हाय हिला सका

    बन मन की मुखरित आकांक्षा, किस अर्थ मिला फिर चिर-क्रंदन

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

    निश्वासों की तापों से यदि

    शोषक हिमदुर्ग गला सका

    उर उच्छ्वासों की लपटों से

    सोने के महल जला सका

    क्यों भाव प्रबल, क्यों स्वर लयमय, किस काम हमारा यह गायन

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

    यदि निपट निरीहों का संबल

    बनने की तुझमें शक्ति थी

    यदि मानव बन मानवता के

    हित मिटने की अनुरक्ति थी

    क्यों आह कर उठा था उस दिन, क्यों बिखर पड़े थे कुछ जलकण

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

    अग्नि-स्फुलिंग-मय वाणी से

    पल पल पावक कण फूँक-फूँक

    यदि कर सका परवशता की

    यह लौह शृंखला टूट-टूक

    क्यों बलिदानी इतना आतुर, क्यों आज बेड़ियों की झनझन

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

    यदि अटल साधना के बल पर

    कर पाया विष मधुपेय नहीं

    यदि आत्म-विसर्जन कर तुममें

    पाया अपना चिर-ध्येय नहीं

    क्यों जग-जग में परिवर्तन मिस, बनता मिटता रहता कण-कण

    फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 301)
    • संपादक : नंदकिशोर नवल
    • रचनाकार : शिवमंगल सिंह सुमन
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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