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ये जो दो हाथ हैं

ye jo do hath hain

देवी प्रसाद मिश्र

अन्य

अन्य

देवी प्रसाद मिश्र

ये जो दो हाथ हैं

देवी प्रसाद मिश्र

और अधिकदेवी प्रसाद मिश्र

    ये जो दो हाथ हैं उनसे दबाने हैं

    थकी हुई पत्नी के पाँव

    इन दो हाथों की मदद से उठानी है सस्ते चावल की भारी बोरी

    और बजाना है हारमोनियम और चलानी है साइकिल ढाल पर

    दोनों हाथों से उलीचना है घर में घुस आया बरसात का पानी

    और फ़ुटबॉल के ब्लैडर में भरनी है हवा

    इन दो हाथों से खोलने हैं अंतर्देशीय और दरवाज़े

    इन दो हाथों से उठाकर बहुत कुछ बाहर भी फेंक देना है कि जैसे

    फ़िल्मकार बुनुअल का एक पात्र खिड़की से

    बाहर फेंक देता है बहुत सारे काग़ज़ों और पादरी को

    इन दो हाथों से जलानी है माचिस

    और तैरना है इस दुनिया के मटमैले जल में

    और शहरों को छोड़ने के लिए रेलगाड़ियों के डिब्बों के हत्थे पकड़ने हैं

    और कई बार ख़ुद से शर्मसार होकर चेहरा ढँक लेना है—दोनों हाथों से

    ये जो दो हाथ हैं इनमें से कभी-कभी एक हाथ को

    थाम लेना है दूसरे हाथ से

    कई-कई दो हाथों को और दोनों हाथों से थामते रहना है

    इन दो हाथों की मदद से ही बिछ पाएगी भाइयो!

    इस सख़्त, बेगाने और पथरीले फ़र्श पर

    बेहद दाग़दार

    यह चादर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : देवी प्रसाद मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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