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शहर के दोस्त के नाम पत्र

shahr ke dost ke nam patr

अनुज लुगुन

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अनुज लुगुन

शहर के दोस्त के नाम पत्र

अनुज लुगुन

और अधिकअनुज लुगुन

     

    हमारे जंगल में लोहे के फूल खिले हैं
    बॉक्साइट के गुलदस्ते सजे हैं
    अभ्रक और कोयला तो
    थोक और ख़ुदरा दोनों भावों से
    मंडियों में रोज़ सजाए जाते हैं
    यहाँ बड़े-बड़े बाँध भी
    फूल की तरह खिलते हैं
    इन्हें बेचने के लिए
    सैनिकों के स्कूल खुले हैं

    शहर के मेरे दोस्त
    ये बेमौसम के फूल हैं
    इनसे मेरी प्रियतमा नहीं बना सकती
    अपने जूड़े के लिए गजरे
    मेरी माँ नहीं बना सकती
    मेरे लिए सुकटी या दाल
    हमारे यहाँ इससे कोई त्योहार नहीं मनाया जाता

    यहाँ खुले स्कूल
    बारहखड़ी की जगह
    बारहों तरीक़ों के गुरिल्ला युद्ध सिखाते हैं

    बाज़ार भी बहुत बड़ा हो गया है
    मगर कोई अपना सगा दिखाई नहीं देता
    यहाँ से सबका रुख़ शहर की ओर कर दिया गया है

    कल एक पहाड़ को ट्रक पर जाते हुए देखा
    उससे पहले नदी गई
    अब ख़बर फैल रही है कि
    मेरा गाँव भी यहाँ से जाने वाला है 

    शहर में मेरे लोग तुमसे मिलें
    तो उनका ख़याल ज़रूर रखना
    यहाँ से जाते हुए उनकी आँखों में
    मैंने नमी देखी थी
    और हाँ!
    उन्हें शहर का रीति-रिवाज़ भी तो नहीं आता

    मेरे दोस्त
    उनसे यहीं मिलने की शपथ लेते हुए
    अब मैं तुमसे विदा लेता हूँ।
    _______________________
    सेरामिक आर्ट के आदिवासी कलाकार और मेरे दोस्त मादी लिंडा से प्रेरित।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज लुगुन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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